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________________ श्री प्रवे... 3२८. देवसेनसूरिने काष्ठासंघकी उत्पत्ति विक्रममृत्युके ७५३ वर्ष बाद बतलाई है और इसे भी पाँच जैनाभासोंमें गिनाया है। उन्होंने इसके कुछ सिद्धान्त भी बनलाये हैं और कुमारसेनको मिथ्याती, उन्मार्गप्रवर्तक, रौद्र श्रमणसंघवाद्य आदि अनेक उपाधियाँ दी हैं। कुमारसेनने ? स्त्रियोंको मुनिदीक्षा देनेका विधान किया, २ क्षुल्लकोंको वीरचर्या ( आतापनयोग आद ) की आज्ञा दी, ३ मयूरपिच्छिकी जगह मुनियोंको गायकी पूंछकी पिच्छि रखनेका आदेश किया, ४ छहा गुणव्रत (?) अर्थात् रात्रिभोजन त्याग नामक एक छहावत निरूपित किया और इसी तरह ५ आगम, शास्त्र, पुराण, प्रायश्चित्त आदि अन्यथारूप बनाकर मिथ्यात्वकी प्रवृत्ति की। काष्ठासंघके श्रावकाचार यत्याचार देखनेसे इन बातोंका विशेष स्पष्टीकरण हो सकता है। इस संघमें नन्दितट, माथुर, बागड़, और लाडवागड़ ये चार भेद या गच्छ हैं। माथुरगच्छको कोई कोई इससे जुदा बतलाने हैं। काष्ठासंघकी उत्पत्तिके समयके सम्बन्धमें कुछ लोगोंका यह ग्वयाल हो रहा है कि वह वीरनिर्वाण संवत् ५६५ के लगभग लोहाचार्यके द्वारा स्थापित हुआ है । एक महात्माने इसकी पुष्टिके लिए एक कथा भी गढ़ ला है जो बहुतोंके लिए वंद वाक्य बन गई है। बड़े आश्चयेकी बात तो यह है कि उसे अपनेको इतिहासज्ञ माननेवाले भी कुछ सज्जन सच समझते हैं, परन्तु वास्तवमें वह कपोलकल्पनाके सिवाय और कुछ नहीं है । लोहाचापके समय काष्ठासंघका होना सर्वथा असंभव है-वह आठवीं शताब्दिके पहलेका किसी तरह नहीं हो सकता। इस समय काष्ठासंघके एक दो भट्टारक सुने जाते हैं, परन्तु सम्प्रदायके लिहाज़से इसका मूलसंघसे अब कोई पृथक् अस्तित्व नहीं है । अग्रवाल, नृसिंहपुरा, मेवाड़ा आदि दो तीन जातियाँ इस संघकी अनुयायिनी समझी जाती हैं; परन्तु अब वे अविभक्त दिगम्बर सम्पदायमें है। लीन हो गई हैं । बड़ी प्रसन्नताकी बात है कि लोग काष्ठासंघ और मूलसंघके मतभेदको सर्वथा भूल गये हैं और आपसमें हिलमिलकर धमका पालन करते है। माथुरसंघ । इसका दूसरा नाम निःपिच्छिक भी है, क्योंकि इस संघके मुनि पिच्छि नहीं रखते । कोइ कोई इसे काष्ठासंघका ही एक भेद बतलाते है। परन्तु पिच्छि न रख
SR No.536511
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1915 Book 11 Jain Itihas Sahitya Ank
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1915
Total Pages376
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size10 MB
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