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नान्स २८४.
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तो इससे निश्चय होता है कि, स्त्रीयोंका गुरूतो एक पतीही है. - हे वत्स अब तुझे मालुम होगया होगा कि, जितना कुसंप हो रहा है. वह केवल विद्य के अभावसेही है. हे भई एक विद्यासे कितने फायदे होते हैं :
श्लोक विद्या ददाति विनयं । विनयायाति पात्रतां ॥ .
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति। धनाद्धर्म ततः सुखम् ।। ७ ।। भावार्थः । विद्यासे विनय । विनयेसे प्रशंसा । प्रशंसासे धन। धनसे धर्म तथा धर्मसे सुख होता है.
और धनवान्को तो चिन्ता बनी रहती है. परंतु इस धनका बिलकुल मि.क्र नहीं रहता देख एक कविने कहा है:--
न चौर हार्य न च गज हाय, न भातृभाज नच भारकारी॥ ____ व्यये कृते वर्धत एव निसं, विद्या धनं सर्व धन प्रधानम् ।। ८ ।।
अब जादे कहनेकी आवश्यक्ता नहीं है । परंतु हे वत्स यह भी तुझे म लुम है? क्या कि, इस अविद्यासे कितने कितने नुकसान पहुंच रहे हैं. और इसके कारण कैसे २ कुरिवाज अपने अंदर प्रवेश कर गये हैं ?
मै० हे मातेश्वरी इन बातोंका सविस्तर वर्णन आपही फरमाइये. मुझे सुननेकी अत्यन्ताभिलाषा लग रही है.
मैत्री० हे भाई जरा लक्षपूर्वक मुनना. यद्यपि इन विषयोंको चर्चते हुवे मेरा हृदय कंपायमान होता है. परंतु क्या करूं कहे वगैर रहा नहीं जाता; खेर, मुन.
सर्वसे दुष्ट या निंदनीय रिवाज इस वख्त कन्याविक्रयका जारी है. इस पर विच र करनेसे मालुम होता है कि, जेनीयोंने इस रिवाजको अंगिकार करके निजके — अहिंसा परमो धर्मः” को बिलकुल नष्ट कर दिया, सबब कि, खास करके जैनी लोग मांसको बेचनेमें और मोल लेने में बड़ा भारी नुकसान समझते हैं। इतनाही नहीं किंतु नरकका मार्ग समझते हैं. तो फिर न मालुम मेरे प्यारे भाई अपनी लडकीयोंको बेचकर किस उपमाको प्राप्त होते हेंगे ? सचमें याद पूछ: जावे तो कतईयों ( butcher ) सेभी वहत्तर है.
वह दुष्ट पिता, जो के अपने धनके लोभसे लडकीयोंको बेच देते हैं। अपने दिलमें कुछ भी खयाल नहीं करते हुये जैसे तैसे आदमी " चाहे बुड्ढा हो या मूर्ख " के साथ शादी कर देते हैं. अरे, बिचारी अबलाएं, जो कि, अपने माता पिताओंके सामने कुछभी नहीं बोल