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________________ १९०५] , आमलनेर कोन्फरन्स. ... अटक शे. हालमां बीजा केटलाक पंथवाळा पुष्कळ पैसानो व्यय करी ते तजवीज चलाववा चुकवाना नथी. तेनी धास्ती पछी रहेशे नहीं. बीजी धास्ती आपणा उछरता जैन विद्यार्थीओनी छे. तेमने योग्य सत्पुरुषोनो तेम साधु मुनिराजोनो समागम नथी मळतो तो निशाळ के कोलेजमांथी निकळ्या के शंकाशीळ बने छे. आ बाबत धणीज अगत्यनी छे. कारण आपणी उछरती प्रजा उपर · आपणी सघळी आशा अने उमेद छे. तेनो उपाय एज छे के आपणी उछरती प्रजाने बनती रीते आपणा धर्मनी खुबीओ समजावी तेम तेमने धर्मलीन पुरुषो अने मुनिमहाराजाओना समागममां मुकवा ए आपणुं कर्तव्य छे. एम करतां पण वखते कोई नज सुधर्यो तो तेनो उपाय एज छे के तेवा धर्मभ्रष्ट प्रत्ये सर्वेए तिरस्कारथी जोधुं. त्रीजी धास्ती जे छे ते ए छे के में सांभळ्युं छे ते प्रमाणे मारवाड विगेरे केटलेक स्थळे सत्पुरुषोना समागमना अभावे केटलाक भाईओ जैन धर्म छोडी गया छे. घरमा तीर्थकर भगवाननी मूर्ति छतां अन्यमती थई गया ते शुं दर्शावे छे के ते मूळ जैन हता पण सत्समागम विना अमूल्य जैन धर्म छोडी लपशी गया. पण मने खुशी उपजे छे के आ विषय आपणा मुनि महाराजाओए हाथ धर्यो छे. तेओ स्थळे स्थळे विहार करे छे तो आ धास्ती रहेशे नहीं. अलीगढ कोलेजना स्थापको जेवा नरोनी जैन कोममां जरूर. उपर मुजब सांसारिक अने धार्मिक सुधारणानी आवश्यकता बावतमां बे मत होय नहीं. आपणे जोईए छीए के वखत बदलाई गया छे. आपणा पूर्वजोना बखतमा हालना जेटलुं हरीफाईमां उतरवू पडयुं होय तेबुं हुं धारतो नथी. हाल तो आपणे आखी दुनियांनी आपणा करतां कळाकौशल्यमां घणी आगळ वधेली प्रजाओ साथे हरीफाई करवानी छे. तेवा समयमा आखी जैनकोमनी तन, मन अने धननी स्थिति सुधारवा दरेक जैने पोतानुं कर्तव्यज मानवानुं छे. तमे जोशो के मुसलमान कोमनी स्थिति केवी हती अने ते सुधारवा केवी खंतथी काम लेवाय छे. मे सांभळ्युं छे के अलीगढनी मोहमेदन कोलेज एक नमुनेदार कोलेज छे. त्यां सातसें आठसें विद्यार्थीओ केळवणी ले छे अने पछी जुदी जुदी लाईनोमा जोडाय छे. थोडा वखत उपर अलीगढना एक गृहस्थ मारे त्यां आव्या हता. तेओ कहेता हता के ते कोलेजने लगती त्रणचार माईल जमीन छे, ज्यां विद्यार्थीओ शारीरिक कसरत विगेरे ले छे. आ कोलेजना मूळपुरुष सर सैयद अहमद तरफ हुं घणा मानथी जोउंछु. दरेक कोममां आवा नरोनी जरूर छे. कोन्फरन्सनो फायदो. आवां कार्यनी असर घणा लांबा वखत चाले छे. पण दिलगीर छु के आपणी कोममा हजी आनी खामी छे. केटलाक आगेवान गृहस्थो कहे छे के अमे कोन्फरन्समां फायदो जोता नथी. अमे तेवाओने कहिए छीए के भले न जुओ तो आपने जे रस्ते आखा समुदायनो फायदो थवो जणातो होय ते रस्तो शरू करो, त्यारे जवाब मले छे के " फुरसद नथी, जोईए तो पैसानी मदद करीए." पण फक्त पैसानी मदद तो तदन निराधारने काम लागे. हुं ते गृहस्थोप्रत्ये पण घणुं मान धरावू . पण मारी अल्पबुद्धि प्रमाणे तेमनी तेमां भूल यती जोउँछु.. आजे तमो सुखी छो, ने कोईनी दरकार नथी पण पेढी उतार पेढीनुं सुख तो कोमनी साथेज जोडाएलु छे. दरेक आगळ पडती कोम, दाखला तरीके आपणा पारसीभाईओमां कोमनी फेटली काळजी छे ?
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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