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________________ मिस्टर गुलाबचंदजी ढढाका प्रयास. तारकी नोबत पहूंची कि जिस कारणसे उस अन्य मनुष्यके . एक मातबर सबंधिनें उसका पक्ष लेकर जातमें और धर्ममें किसी केदर झगडा डाला. यह खयाल ठीक नहीं है अब प्रतिपक्षियोंने यह सवाल उठाया है कि चोधरीको सबके ऊपर अपने दस्तखत करनेका अधिकार नहीं है चोधरीजीको यह उज्र है कि शाही वक्तसे यह काम चोधरायतका हमारे कुटुम्बमें चला आता है और उस समयसे हमारे दस्तखत सबके ऊपर होते हुवे चले आते हैं यह उज्र दोनों पक्षका कहांतक सही है हम नहीं कह सकते हैं क्योंकि इस बातका फैसला उस वक्त हो सकता है कि जब दोनों पक्षवाले किसीपर भरोसा करके उसके रोबरू अपने उजरात और सनदें पेशकरें परन्तु इस समय इतना कहना अनुचित नहीं होगा कि अवलतो इस टंटेका उठनाही जैन धर्मके विरुद्ध है कारण कि अपने पिछले कृत्योंका फल तो हम इस वक्त पा रहे हैं और इस वक्त जो भले बुरे कृत्य करेंगे उनका फल आगामि कालमें अवश्य पावेंगे, इस बातपर गोर करके हर जैनीको चाहिये कि अपने झगडे टंटेको फोरन तै करके बुरे कोंके बंधनसे निवृति पावे. प्राणीमात्र अपने भाईबंद हैं क्योंकि सबका उत्पत्तिस्थान एकही है फिर दूसरेके साथ बैरभाव रखकर संसारको बढाना जैनधर्मके असूलके खिलाफ है दूसरे अगर किसी तीव्र दुष्ट कृत्यके जोरसे इस वक्त यह सुमति उत्पन्न नहोसके तो इस बातपर विचार करना अवश्य है कि यह झगडा धर्म कार्यमें विघ्न डालने वाला क्योंहो? धर्म कार्यके चंदेका चिठा संसारीक कार्यसे कुछ सम्बन्ध नही रखता इसके चिठेमें कुछ ऊचे नीचेका खयाल नहीं होना चाहिये था परन्तु इस पञ्चम कालनें अपना पूरा पूरा जोर दिखलाया. खैर अगर यह ही माना जावेकि धर्मकार्यमें भी नामकी अपेक्षा जुरूर होती है तो इस कार्यको चलानेके वास्ते हम एक अच्छी तरकीब बतलातेहैं कि जिस ढंग पर चलनेसे जो साहब चाहवे वहही अपना नाम सबके ऊपर मांड सकताहै. वह यह है कि एक बड़ा कागज लिया जावे और उसमें एक दायरा, सरकिल (Circle ) खेंचा जाने उस सरकिलमें जो साहब चाहवें वह नाम लिखदें और अपने नामको सन्मुखलेकर अपना नाम ऊपर समझलें तो दूसरोंके नाम उनके नजदीक नीचेही पढनेमें आवेंगे. कामके किसी तरहपर चलानेकी यह एक उम्दा तरकीब है. पाठशालाके काम होनेसे और उसमें अपनि संतानको धर्म शिक्षा मिलनेसे अपनी और अपनी संतानके आत्माका कल्याण होनेके सिवाय जैन धर्मको बडाभारी लाभ पहुंच सकता है. हम आशा करते हैं कि हमारे आगरानिवासी भाई इस बातकी तरफ अवश्य ध्यान देकर जिस पाठशालाके खोलनेका उन्होंने नियम किया है जुरूर खोलेंगे और उस मथुराके चौबेके पुत्र की जैसे ऊपर नीचेके नामका मिस लेकर इस उत्तम कामसे हाथ न धो बैठेंगे.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
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