SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४ जैन कॉनफरन्स हरैल्ड. [ जनवरी वगैरह के किराये में लगाते हैं वह पैसा व्यर्थ नहीं लगता है बल्के एक शुभकार्य के मदद देनेमें खर्च होता है के जिसका परिणाम अन्तमें अच्छा है-ऐसा आक्षेप कारआमद नहीं होसक्ताहै न इस कोनफरन्सके खैरखुवा होंके ऐसे खयालात होना चाहिये. शुभ कामभे रुपय्या खर्च करनेके उपायोंके लिये ही रेल वगैरहका किराया लगाकर इतने सज्जन तकलीफें उठाकर दूर दूरसे आकर इकठे होते हैं. - चोथा आक्षेप यह है के अब तक तीन जलसे हो गये कोनफरन्सने क्या कार्यवाही किई, क्या इन्तजाम किया, क्या बहादुरी किई ? यह आक्षेपमी कच्चा है जिसतरहसे बूढे नशेबाज आदमी चोहटों दर बैठ बैठ कर पीनकके अन्दर सच्ची झूटी गप्पें मार मार कर अपना अमूल्य समय व्यर्थ खोते हैं उन गप्पों में कुछ सचावट नहीं होती बल्के उनको जो बात नशे में सूझ पडती है वहही उनके मुस्वसें धणी के भागकी निकल पडती है वैसेंही इस आक्षेपकी बुनियाद समझना चाहिये. हर तालीम पाया मनुष्य को याद रहता है के “Rome was not built in a day" अर्थात् शहर रोम एक दिनमें नहीं बनाया गयाथा इसका मतलब यह है के बडे कामों केलिये ज्यादा समय चाहिये, बडे काम थोडेसे समयमें पार नहीं पडसक्ते हैं और जिसमें भी खास करके ऐसे बडे काम के जिनके लिये न काफी मसाला मोजूद हे न कारीगर मोजूद है न उस बड़े कामके पार पटकनेवालोमें जैसी हमदर्दी, हिम्मत, हुशयारी चाहिये वैसी पहिलेही पहल नजर आती है तो फिर इस तरह पर एक हांसी और मजाक के तौर पर कह बैठना के अब तक कोनफरन्सने क्या किया उचित नहीं है. हरबडे कामके शुरुआत में मुशकिलें पेश आती हैं; शुरुही शुरुमें बहुत थोडी तरक्की मालुम होतीहै जैसे लकडीके वुरके ( मोटी लकडी) को फाडने में कुल्हाडे की दो चार चोट तो ऐसी मालुम होती है के मानो कुछ लकडी पर असरही नहीं करती परन्तु असलियतकी तरफ नजर डाली जावे तो मालुम होजावेगा के पहले की कुल्हाडे की चोटने दूसरे कुल्हाडे की चोट केलिये रस्ता जारी करदिया है और दूसरीने तीसरीके लिये यहां तकके जो दो चार चोटोमें असर मालुम नहीं दिया वह आयन्दा एक चोटसें के जिससे लकडी फटजातीहै भली प्रकार मालुम हो जाती है. इसही तरह पर जब मकान बनाया जाता है तो एक एक पत्थर के चुनने से कुछ यह अनुभव नहीं होता है के किसी समयमें इसही एक एक पत्थर की चुनावट सें एक वडा भारी महल नजर आजावेगा, परन्तु वह एक एक पत्थर ही अपना काम जरूर करता है और महल की चुनावटमें मदद देता है. इन्डियन नेशनल कोंग्रेस जब शुरु हुई क्या दशा थी ? आज बीस बरसके अन्दर इस कोंग्रेसने क्या चमत्कार दिखलाया है ? इसही तरह पर जब जैन श्वेताम्बर कोनफरन्स मेरतारोड स्टेशनपर शरु हुई उस समय सिर्फ इसकी नीव डाली गई थी और जब मुम्बई और बडोदामें इसके सालाना जलसे हुवे तो सब को मालुम हो गया के जैनियोंकी तरफसे इत्तफाक के साथ क्या उमदा कार्यवाही किई जाती है.
SR No.536501
Book TitleJain Shwetambar Conference Herald 1905 Book 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGulabchand Dhadda
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1905
Total Pages452
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Shwetambar Conference Herald, & India
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy