SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ જેન યુગ. त०११-3-1८४० १० श्री सम्मेत शिखरजीकी आज भी चुभते हैं कि हम यात्रियों के नौकर नहीं। इस मन्दिर की व्यवस्था करनेवालों को चाहिये : मेरी यात्रा ऐसे उग्र स्वभाववालों को कभी ऐसे पवित्र स्थानों पर नहीं रखना चाहिये। दुनियामें मसल मशद्र चार. है 'आप किसीको आराम देंगे तो वह आपकी सेवा ( लेखकः--मुंदरलालजी जैन.) अवश्य करेगा' परन्तु यहां बात ही उल्टी देखने में (गतांकसे चालु) आई। जैसा एकांत शान्त स्थान ओर उसके रखवाले अयोध्या हिंदुओंका भी बड़ा भारी तीर्थ है। विल्कुल उल्टे इतने उग्र स्वभाव के। अस्तु मेरी तो व्यवस्थापकोंसे विनम्र प्रार्थना है कि ऐसे तीर्थों परसे सरयु नदी पास है। लोगोंका कहना है कि यहां की वीभावी मनुष्य रखने चाहिये। थोड़ी दूर सारनाथ में मूर्ति चमत्कारी है। अयोध्या दो दिन रहकर हम बौद्धों का 'मूलगन्ध कटो विहार' नामक मन्दिर सीधे विमारस (काशी) पहुंचे। काम भलुपुरा देखने के काबिल है। मन्दिर एक आदर्श है। ऐसे भदैनी. रामघाट तथा और भी कई एक श्वेताम्बर, । मन्दिर अपनी समान में होने चाहिये । मन्दिर में जैन मंदिर शहर में हैं। भेलुपुरा में धर्मशाला है भगवान बुद्ध की मूर्ति कैसी मनोहर है। मन्दिर में साथ में दिगम्बर मंदिर है। श्वेताम्बर मंदिर के बीचसे कितनी शांति विराज रही है। दिवारों पर भगवान की रास्ता है। श्वेताम्बर मंदिरकी वेदी पर दिगम्बर सर लीलाएं चित्रों में दिखाई है. मन्दिर क्या है प्रतिमा भी रखी हैं जो झगडेका बीज है। समयकी Model है। मन्दिर के अन्दर जाते ही चित्त को बलिहारी है। तीर्थस्थान जो शांति के रुप होने बडी शान्ति मिलती है ओर भगवान का जीवन चाहिये आत्मा को आनंद मिलना चाहिये वहीं आन आंखों के सामने आ जाता है। वहीं पास में दिगम्बर स्थान स्थान पर क्लेश-झगडे खडे हैं। भेलुपुरा के मन्दिर है। वहांसे वापीस काशी आए। काशी व्यवस्थापकों को चाहिये कि दिगम्बर मूर्तियां दिगम्वर मंदिरमें विराजमान कर दी जावें और अपना .. हिन्दुओंका बडा भारी तीर्थ है । हिन्दु युनिवर्सिटी की सीट हैं। काशीसे हम पटना गये। पटना शहर अपना रास्ता अलग अलग बना लेवें ताकि भविष्य में भगवान का मन्दिर है यहां भी एक तर्फ दिगम्बर यह झगडा भी कहीं उग्र रुप न धारण कर लेवे। रखी है। गुलजार बाग स्टेशन के दसरी तर्फ भेलुपुरे में भगवान पार्श्वनाथ के चार कल्याणक हैं। मुदर्शनसेठ व श्रीस्थूलिभद्रजी की देरी हैं। पटना से हम भेलुपुरा के पास ही भदैनी में श्री सुपार्थ प्रभु के चार लोग सीधा रानगिर स्टेशन पहुंचे। वहां बडी विशाल कल्याणक हैं। गगा के तट पर इस मंदिर का दृश्य देखने लायक है। वहींसे रामघाट में बडा भव्य मंदिर धर्मशाला है पास में मन्दिर है। शहर में दिगम्मर बौद्ध है। अनेकों मूर्तियां हैं। काशीसे १४ माइल के उपर : तथा हिन्दुओं के मन्दिर है। यहां अनेक कुंड गरम चंद्रपुरी है। मोटरसे हम लोग वहां गये। गंगा के पानी के हैं जो पहाडों से न मालूम करका उसी धारा तट पर बहुत उंचे विशाल स्थानमें मंदिर है। गंगा का मवाह से निकल रहा है। पानी अनेक रोगों के लिये दृश्य बड़ा सुंदर है। यहां चंदा प्रभु के चार कल्याणक लाभ दायक है। लोग: सैंकड़ों की तादाद में यहां है। धर्मशाला भी है। यहांसे वापिस होते ही स्वास्थ ठीक करने आते हैं। मोटर से हम लोग सिंहपुरी (जो सारनाथ के पास (अपूर्ण.) गांव में है ) पहुंचे। यहां श्री श्रेयांस प्रभु के चार कल्याणक है। यहां का बुढा पुजारी बडी तेज મુનિશ્રી વિદ્યાવિજયજીના શિષ્યને વડી દીક્ષા. मीजाज का है। यात्रियों से कमसे कम मनुष्यता का श्री निलने ભુજ, તા. ૭ મી માર્ચ મુનિશ્રી વિદ્યાવિજ્યજીના શિષ્ય से धामधुम पूर्व डीक्षा आ५. वर्ताव तो होना ही चाहिये पर उसके यह शब्द मुझे वामां आपी ती. આ પત્ર શ્રી. મનસુખલાલ હીરાલાલ લાલને શ્રી મહાવીર પ્રી. વર્કસ, સીલવર મેનશન ધનજી બીટ, મુંબઈ ખાતેથી છાયું, અને મી. માણેકલાલ ડી. મોદીએ શ્રી જૈન “વેતાંબર કોન્ફરન્સ, ગોડીજીની નવી બીલ્ડીંગ, પાયધૂની, મુંબઈ ૩ માંથી પ્રગટ કર્યું છે.
SR No.536280
Book TitleJain Yug 1940
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dipchand Chokshi
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1940
Total Pages236
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy