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बैन युग.
101--14४०
चर्चा में संसार के सामने वास्तव में कुछ स्पष्ट और निश्चित अहिंसा और रक्षा:
राय रख सकें तो अहिंसाँ धर्मके प्रचार में श्रोडासा हाथ बंटा
सकने के पुन्य के भागी भी हो सकेंगे। आज देश भर में इस बात की चर्चा हो रही है कि
इन सब बातों को ध्यान में रख कर हम नीचे लिखे आया बाहरी आक्रमण या अन्दरुनी शगडों से देश को और ,
कुछ प्रश्नों पर आपको स्पष्ट और निश्चित राय चाहते हैं देश बासियों की रक्षा बिना फौज हथियारों के और अहिंसक और आशा करते हैं कि गप हमें जितनी जल्दी हो सके, तरीके से हो सकती है या नहीं। जैसा कि आपको विदित अपने उत्तर से कृतार्थ करेंगे। हम यह पत्र सभी जैन सम्प्र
आज पिछले २५ वर्ष से हिन्दुस्तानकी आजादी के लिये दायों के आचार्य, प्रख्यात साधु, आगेवान श्रावक तथा जैन गजनैतिक क्षेत्रमें भो अहिंसा के सिद्धान्तका प्रयोग हो रहा पत्रों के सम्पादकों के पास भेज रहे हैं और चाहते हैं कि है। इसके पहले तक हमारे ख्याल में अहिंसा धर्म व्यक्ति के पर्युषण पर्व तक सब उत्तरों का संकलन करके प्रकाशित निजी जीवन में और उसमें भी एक संकुचित दायर में करें। यदि हमारी जानकारी न होने से या भूल से किन्हीं सिमित रहा पर यह स्पष्ट है कि जब तक अहिंसा के महानुभाव के पास यह पत्र खास तोर से न पहुंचे तो भी सिद्धान्त का हम हमारे व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन के यह उनकी नजर में आने पर वह अपना मत इस पर प्रकट सभी क्षेत्रों में उपयोग न करे, यह सिद्धान्त अधूग और करग, एसा हम आशा है। प्रश्न इस प्रकार है। पंगु हो रहेगा। जीवन के अमुक क्षेत्र में या दिन रात के
१ जैन धर्म के अनुसार अहिंसा की क्या...व्याख्या है ?
आपकी राय में क्या आज जो व्याख्या की जाती है. चौबीस घंटों में से अमुक समय में ही अहिंसा का पालन
वह उससे भिन्न है? आपकी सम्मति में. अहिंसा की और शेष में हिंसा की छट हमें तो केवल अधा ज्ञानहीन
पूर्ण व्याख्या क्या है ? धर्मपालन ही मालूम होता है। इसमें कायरता भी मालूम
२ क्या यह संभव है कि बाहर के आक्रमण या अंदहोती है। हमारा मतलब यह नहीं है कि कोई भी आदमी
रूनी झगडो जैसे हिन्दु मुस्लिम दंगे, या लूट मार से पूर्ण अहिंसक रूप से जीवन व्यतीत कर सकता है। यह तो
बिना हथियारों या फौज के अहिंसात्मक ढग से देश असम्भव सी बात है क्योंकि जीवन के लिये हिंसा किसी की रक्षा हो सकती है? न किसी रूप में अनिवार्य है पर अहिंसा को कुछ क्षेत्रों में ३ यदि ऐसा नहीं तो क्या आपको राय में अहिंसा ही सिमित कर देना और दूसरे क्षेत्रो में हिंसा की प्रधानता . जीवन का सर्वव्यापी सिद्धान्त नहीं हो सकता ? . और छुट मान लेना तो अहिंसा के मूल पर आघात करना
४ यदि अहिंसात्मक ढंग से देश की रक्षा का प्रश्न हल है, हमारा ऐसा ख्याल है। ऐसी स्थिति में अहिंसा केवल हो सकता है, तो किस तरीके से और क्यो कर? एक बिडम्बना मालूम होती है। इस सिलसिले में हम ५ आपकी जान में क्या जैन शास्त्री या साहित्य में ऐसे आपका ध्यान 'तरुण ओसवाल' के अगस्त के अक कोई उदाहरण है जब देश या गज्य की रक्षा के लिये प्रकाशित महात्मा गांधी के 'वारों की अहिंसा' शीर्षक भाषण अहिंसात्मक उपाय काम में लाये गये हों? की और आकर्षित करते है। जिसमें अहिंसा को व्यापक और ६ क्या आपको जान में शास्त्रों में ऐसा भी उदाहरण है विशद पर साथ ही सुगम व्याख्या की गयी है।
जब देश या धर्म की रक्षा का प्रश्न उपस्थित हाने पर आन भारतवर्ष हो नहीं, सारे संसार का ध्यान अहिंसा
जैन आचार्योंने हिंसा से रक्षा कानेका आदेश दिया के सिद्धान्त की और गया है। ऐसे अवसर पर अहिंसा को हो या आयोजन किया हो। परम धर्म माननेवाले हम जैनो की एक विशेष उत्तरदायित्व हम आशा करते हैं कि जैसा भी हो, संक्षेप में या . . हो गया है। हजारों वो से परम्परा से हम अहिंसा धर्म की विस्तार से आप अपना उत्तर हमें शीघ्र ही भेजने की कृपा . घोषणा करते रहे हैं और उसके लिये बहुत से कष्ट भी सहे करंग। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि इस प्रश्न का हैं। इसलिये आज जब अहिंसा के सिद्धान्त का परीक्षा का
चर्चा उठाने में हमारा एक मात्र उदेश आहंसा के प्रचार में. और उसके विकास का समय आया है, तब हमारा कर्तव्य
तथा उसके सुयोग के बाच में आई हुई बाधाओं को दूर
करने में जितना हो सके उतना सह्योग देनेका है। हो जाता है कि हम इसका प्रतिष्ठा में अपना सह्योग दें और स्पष्ट तोर पर अपना मत दें। हम समझते हैं कि और
विजय सिंह नाहर. कुछ न कर सकें तो अहिंसा को सैद्धान्तिक चर्चा में तो हम
सिद्धराज ढा. अधिकार से बोल ही सकते हैं। यदि हम आज इस प्रश्न की
भंवरमल सिंधो.
આ પત્ર શ્રી. મનસુખલાલ હીરાલાલ લાલને શ્રી મહાવીર પ્રી. વસ, સીલવર મેનશન, ધન મીટ, મુંબઈ ખાતેથી છાયું, અને મી. માણેકલાલ ડી. મેદીએ શ્રી જૈન શ્વેતાંબર કોન્ફરન્સ, ગેડીઝની નવી બીડીંગ, પાયધુની મુંબઈ , માંથી પ્રગટ ઇ