SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसमें सन्देह नही कि यह तीर्थ, मंदिर, धर्मस्थान, शिलालेखादि जितने भी प्राचीन अथवा नवीन स्थान हैं वे सब हमारे इतिहास के साधन हैं और हमारी प्राचीनताको सिद्ध करते हैं। इस लिये इन तीर्थों आदिका खोना अपने इतिहासका नाश करना है। यदि आपआपना अस्तित्व चाहते हैं तो मेरे क्षुद्र विचारसे तीर्थ रक्षाके लिये एक ऐसी कमेटी स्थापित करीये कि जिसका कार्य अपने तीर्थों, मंदिरो, धर्मस्थानों आदिका रक्षण हो। जो धर्मस्थान हमारे हैं उनके रक्षण के लिये ऐसी उदारताओ हमारेही पाओंके काटनैके लिये कुलहाडेका काम दे रही है उसको स्थान न देते हुए अभीसे कटिबद्ध हो जाओ जिससे नये झगडे पैदा ही न हो सकें तथा झगडेग्रस्त तीर्थस्थानोंके लिये अपने हक्कोंका संरक्षण करते हुए शीघ्र निर्णय कराने का प्रयत्न करें । केसरियाजी. आज और तीयोंके झगडोंके साथ साथ हमारे सामने केसरियाजी तीर्थका प्रश्न गम्भीर है । इसके विषयमें आप लोग विचार तो करेंगे ही परन्तु मेरे विचारसे तो अपने हक्कोंकी पूर्ण रक्षाके लिये हमको कटिबद्ध रहना चाहिये । और विजयशांतिसूरिजी केसरियाजीके लिय जो प्रयत्न कर रहे हैं वह हमारी समझमें बहुत प्रशंसनीय है। कॉन्फरन्सका मुख्य कर्तव्य है कि उनके सार्थ पूर्ण सहयोग करके उचित प्रबन्ध करनेकी पूर्ण चेष्टा करे । तीर्थोका प्रश्न इस समय बडा जटिल हो रहा है और इस विषयमें बारंबार उदारता दीखलाते जायेंगे तो रहे सहे तीर्थोकांभी इसी प्रकार आपत्तीका शिकार होना सभव है। उपसंहार. __ मैंने आपने विचार संकेत और संक्षेपमें आपके सामने रखे हैं आपसे नम्र प्रार्थना करता हूं कि आप मेरी प्रार्थनाओंपर विचार करके कुछ ठोस कार्य करनेकी कृपा करें । मुंबई भारत वर्षकी एक प्रधान नगरी है। यहांपर सभी प्रतिके लोग रहते हैं। यहांका जैन संघभी बहुत बड़ा है। इस प्रकार यहां पर सर्व प्रकारकी सुविधाएं हैं। इस लिये मैं आशा करता हूँ कि आप लोग यहांपर कुछ ऐसा काम कर जावेंगे जिससे जैन धर्म और जैन संघकी उन्नति हो। मेरे वक्तव्यमें कुछ अनुचित कहा गया हो तो मुझे क्षमा करे । निर्मलकुमारसिंह नवलखा स्थळ:-माधवबाग. ता. ५-५-३४ शनिवार. बंबई. प्रमुख जैन श्वे. कॉन्फरन्सका चौदवा अधिवेशन. जैनम् जयति शासनम् ।
SR No.536274
Book TitleJain Yug 1934
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1934
Total Pages178
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy