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________________ IMIT IIIIIIIIIIIIII १२ -न युग ता. १-11-33. __ और मेवाड़ राज्य. गया बड़े राजे महाराजे और वाइसराय तक किसी भी जाति के आगेवानों से मिलने में संकोच नहीं करते पर उदय पुर का तो न्याय ही निराला है कितनी जबरदस्त कमजोरी कि न्याय संगत उतर देना भी कठिन हो गया उत्तर देना तो मिलने वाले के हाथ में होता है चाहे जैसा देवे पर मिलने से भागना भी कोई बहादुरी है। यह बातें साफ़ जाहिर करती है कि स्टेट के पास कोई आश्चर्य है कि मेवाडाधीश महाराणा उदयपुरको अधि- न्याय संगत उत्तर नहीं है केवल अधिकारी वर्ग अपनी कारियों ने ऐसा धेरा है कि प्रजा से मिलने ही नहीं दिया मन चाही करने वास्ते किसी गुप्त षड़यन्त्र में लगा है जाता! जहां दूसरे राजे महाराजे अमीर गरीब सब से इसी वास्ते प्रजा की सच्ची आवाज महाराणा के कानों तक बिना रोक टोक मिलने का समय रोजाना निश्चित रखते नहीं पहुंचने देता यही कारण है कि इने गिने मनुप्यों की हैं उन का दुखडा अपने कानों सुनना पहिला फर्ज ख्याल हा वहा तक पहुच ह सब साधारण अपना दुखड़ा महाराणा करते हैं यहां तक कि प्रजा की सच्ची दशा जानने वास्ते के सामने सुना सके ऐसा मौका ही नहीं आने देते न कोई सामन सुरु ऐसा प्रबंध है। भेष बदल कर नगर में घूमते हैं अन्याय से पीडित हुये यदि किसी को कुछ महारणा को मालूम कराना हो मनुष्यों को न्याय दिलाने का शीघ्र प्रबंध करते हैं । वहां तो वो इन्हीं में से किसी के द्वारा मालुम कराता है जिसको महाराणा उदयपुर को इन सब बातों से प्रथक रखा जाता । दरबार तक पहुँच हो अब सुनाने वाले की मरजी रही है कारण ऐसा करने से अधिकारियों की पोल खुल जाती सुनावे या न सुनावे बढा कर सुनावे या घटा कर सब है और वो अपना मन चाहा नहीं कर सकते जिसका ताजा काम दूसरे के भरोसे पर है असली शब्द टोन और लहजा उदाहरण अभी हाल में श्री केसरिया जी तीर्थ के बारे में तो अदा ही नहीं हो सकता तो बताईये, प्रजा को न्याय मिल चुका है। कैसे मिले अधिकारी वर्ग को भय किसका रहा फस्ट किलास यह तीर्थ जैन श्वेताम्बर समाज की मिलकीयत है मुगल पावर स्टेट है बृटिश गवरमेंन्ट तो बार बार बीच में बोलती सम्राट् और प्राचीन महाराणाओं के पट्टे परवाने उक्त तीर्थ के ही नहीं और महाराणा को एक प्रकार दूसरी दुनिया में बारे में इन्हीं लोगों को हक में मिले हुवे है परन्तु अधिकारी रखा जाता है प्रजा की सच्ची दशा का. उन को ज्ञान ही वर्ग पण्डों की खातिर इन सब पर पानी फेरकर मन चाही नहीं होने दिया जाता अपने मन माफिक चाहे जेसा करने को तैयार हो गया है और पंडों की पीठ कर उन्हें महाराणा को उलटा सीधा समझा कर हुकम करवाते हैं नौकर से मालिक बनाना चाहता है इतना ही नहीं पर व वा कर देते हैं जैसा कि उक्त तीर्थ पर पूजन प्रक्षाल की उक्त तीर्थ को जैन समाज से छीन कर वैष्णव तीर्थ बनाने आय बाबत खुद महाराणा के फैसलों ठुकरा कर उन्हीं के पर उतारू हो गया है जिसकी सिद्धि वास्ते कई आज्ञा ऐ विरुद्ध महाराणा से ही हुकम जारी करा दिया कहिये म्टेट से एसी निकल गई है कि जिसके कारण तमाम महाराणा साहिब के पहिले फैसलों की क्या कदर रही हिन्दुस्तान के जनों को महान दुख होकर बड़ा जबरदस्त लोग कहते हैं कि यह राजाओं के फैसले हैं या पनवाड़ी आन्दोलन खड़ा हो गया है उसको शान्त करने वास्ते के पान जो हमेशा बदलते ही रहते हैं. समस्त भारत के श्वेताम्बर जैनियो की तरफ से एक डेपूटेशन ज़रा गौर का मुकाम हैं कि जब महाराणा साहिब ने महाराणा साहिब से मिल कर शान्तमई निपटारा कराना बड़ी जांच पड़ताल और फरीकैन का सबूत देखने के बाद चाहता था जिस के लिये सेठ आनन्द जी कल्याण जी अह- अपने दोनों दीवानों की राय लेकर सर्वत् १९७९ में मदाबाद वालों ने तार चिठ्ठी देकर मिलने का समय भी मांगा फैसला दिया और उसके विरुद्ध निगरानी होने पर फिर पर खेद है कि डेपूटेशन को मिलने का समय ही नहीं दिया (अनुसंधान पृष्ट ७१ पर). Printed by Bhogilal Maneklal Patel at Dharma Vijaya Printing Press, 14, Pydhoni, Bombay 3, and Published by Maneklal D. Modi for Shri Jain Swetamber Conference at 20. Pydhoni, Bombay.
SR No.536273
Book TitleJain Yug 1933
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Dalichand Desai
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1933
Total Pages90
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size10 MB
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