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________________ -मेन युग ता.१-४-३२ श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब डाक्टर K. N. Sitaram M. A. P. H. D. Cdurator central museum Lahore का प्रभावशाली व्याख्यान गुजरांवाला के षष्ठ वार्षिकोत्सव का “जैन धर्म का भारत के कला कौशन्य में स्थान" पर विवरण. हुआ। उन्हों ने बडी योग्यता सेकडों अकाट्य प्रमाण देकर श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजरांवाला का षष्ट वार्षिको- वह । हर बह सिद्ध किया कि जैनधर्म भी किसी समय में राजधर्म ग्रह त्सव ईस्टर की छुट्टियों में २५, २६, २७ मार्च सन् चुका चुका है। भारत का कोई प्राकृतिक दृश्य ऐसा नहीं है जहां १९३२ ई. को गुरुकुल के इहाते में सफलता पूर्वक हआ। पर जन मदिर, जैन मूर्ति और जैनियों की यादगार न हो, प्रबन्धक समिति के सदस्य २३, मार्च ही को आगये थे। कई शताब्दियों तक जैनधर्म वहीं भारतीय जनता का धर्म २३ और २४ मार्च को प्रबन्धक समिति की बैठकें होती रहा है। रहीं। २५ मार्च को गुजरांवाला टाउन स्टेशन पर मनो- २७ मार्च को शिक्षा समिति की मीटिंग के बाद नये नीत सभापति का बड़ी शान से स्वागत किया गया। वि. का. प्रवेश संस्कार हुआ। तदनन्तर डा. K. N. Sitaजुलूस शहर के मुख्य २ बाजारों में होता हुआ वहीं समाप्त ram M. A. Ph. D. का दूसग भाषण अंग्रेजी ही में हुआ। २ बजे दोपहर को सभापतिजी ने छात्रों की बनाई “जैनधर्म का मानव समाज को संदेश" पर हुआ । जिस हुई वस्तुओं की प्रदर्शिनी का उद्घाटन किया। जनता ने में बतलाया कि अहिन्सा के सन्देश ने २५०० वर्ष पहले प्रदर्शिनी की वस्तुओं को भली भांति देख कर प्रशंसा की। जिस सुख और शांतिको स्थापित किया था वही अहिंसा सभापतिजी ने अपने भाषण में समाज की आवश्यकताओं का सन्देश आज फिर दुनिया को जीवन प्रदान कर रहा और गुरुकुल शिक्षण की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। है । दोपहर को २ बजे से विद्यार्थियों के भजन, संवाद इस अवसर पर श्रीयुत सभापति शेर बहादुरसिंह जी सिंघी और भाषण के बाद श्रीमति दुर्गादेवीजी का भाषण हुआ। कलकत्ता निवासी के साथ दो और सज्जन कलकत्ते से पधार तत्पश्चात् पं. सुखलालजी ने जनता को समझाया कि जैन थे । ज उत्सव में सम्मिलित होने वाले सजनों में मुनि जाति को अहिंसा का सदुपयोग भूल गया है कि अहिंसा तिलक विजयजी, मुनि कृष्णचन्द्रजी, यति विनय विजय की जान सेवा है और सेवा का क्षेत्र जैनियों का विशाल जी, पं. जुगल किशोरजी, पं. सुखलालजी, सेठ दयाल होना चाहिये । समाने के एक भाई के गायन और जंडिचन्दजी, लाला दौलत रामजी, प्रो. ज्ञान चन्द्रजी, डा. याले के भा. प्यारे लालजी के व्याख्यान के पीछे त्रस्टी, बनारसी दासजी, बा. गोपी चन्द्रजी और बाबू मूलचन्द्र ऑडीटरान और प्रबन्धक समिति के सदस्यों का चुनाव बोहरा आदि सजनों के अतिरिक्त श्रीमति रामा देवीजी, हुआ। रात को वि. के भजन, संवाद और बाद विवाद प्रबऔर श्रीमति दुर्गा देवी जी के नाम उल्लेखनीय हैं। जाति न्धक समिति का चुनाव १२ बजे तक हुआ और उत्सव के प्रसिद्ध सज्जनों के सन्देश सुनाये जाने के पश्चात् गुरुकुल सहर्ष समाप्त हुआ। की सन् १९३१ के हिसाब और रिपोर्ट सुनाये गये। गुरुकुल को श्री सुमति विजयजी व अन्य मुनिविद्यार्थियों की फौजी ड्रिल हुई। रात को ८ बजे से विद्या- राजों की प्रेरणा से नारोबाल निवासी भा. दिखी राम जंगीरीर्थियों के भजन सम्बाद आदि के बाद बहिन राम देवी जी मल जी ने अपनी सारी संपति जिस का अन्दाजा लगभग का स्त्री समाज के सुधार पर व्याख्यान हुआ। १५००० किया जाता है दान की जिस के लिए वसीयत २६ मार्च को प्रबन्धक समिति की बैठक के बाद नामा रजिस्ट्री हो चुका है । और भी दान की कई छोटी संरक्षकों की मीटिंग हुई और २ बजे से वि. के. भजन २ रकमें प्राप्त हुई । इस अवसर पर श्री हस्तिनापुर तीर्थ व्याख्यान के बाद मुनि तिलक विजयजी का व्याख्यान क्षेत्र समिति की एक बैठक भी हुई। और पंजाब जैन हुआ । पं. जुगल किशोरजी ने पं. मुखलालजी का प्रभा- महासभा की भी बैठक हुई। पंजाब जैन स्त्री समाज का वशाली निबन्ध जैन सम्प्रदायों के भेदाभेद पर हुआ। भी अधिवेशन हुआ । संरक्षक-परिषद में गुरुकुल के सभापतिजी ने परीक्षार्थ वि. को तत्काल बोलने को संबंध में बहुत सी ठीक २ बातें संरक्षकों को बताइ गइ, कहा । विद्यार्थी सफलता पूर्वक बोले । परिणाम स्वरूप पं. जिन से उन के भ्रम दूर हुए । अधिवेशन अपने उद्देश्य के सुखलालजी ने वि. और शिक्षकों को उत्साहित किया। लिहाज से अति सफल हुआ। रात्रि को वि. के व्याख्यान, भजन और संवाद के पश्चात् -मानद् मंत्री.
SR No.536272
Book TitleJain Yug 1932
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1932
Total Pages184
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size13 MB
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