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________________ जैन युग. .EN वीर संवन् २४५७. हिन्दी विभाग. .. . ता. १५-४-३१. कविवर श्री कन्हैयालाल जी के यह राष्ट्रीय क्रान्ति कदापि सम्भव न थी। इसी पकार जब तक हमारी जाति के युवकों में जागृति, भाषण का कुछ अंश.. त्याग और बलिदान के भावों का समावेश नहीं होगा (गतांक ६ से चालु.) .. तब तक हमारो यह चीख-पुकार केवल अरण्य-रोदन युवकों से रहेगी और हमारी उन्नति की आशा आकाश कुमुम । प्यारे यवको! आप हमारी आशाओं के अतएव अब हमारी द्रष्टि आप पर ही केन्द्रीभूत है, उज्ज्वल आलोक हैं, हमारी जाति की निधि के दैदी- हमारी उत्सुक आंखें आप ही की ओर देख रही हैं प्यमान रन हैं, हमारी भावी उन्नतिके साधन हैं और और हमारी हृदयों में यह दृढ विश्वास है कि अपनी कुप्रथा, कुनियमन एवं कुरीतियों के अन्धकार से जाति की हित-रक्षा में तथा उसके उन्नति साधन में आच्छादित सामाजिक वातावरण के उज्ज्वल प्रकाश आप किसी प्रकार के भी त्याग तथा वलिदान करने हैं। आप के तेजोमय रूपको देख कर ही हम अपने में न हिचकेंगे और जाति में अपनी जागृति से ऐसा हृदय जुड़ाते हैं और आशा ही नहीं विश्वास करते हैं अभूतपूर्व नव-जीवन भर देंगे कि जिसको गाथा कि आप ही हमारे लुप्तपाय प्राचीन गौरव को पुनरु- जातीयता के भावी इतिहास में स्वर्णाक्षरो में अङ्कित ज्जीवित कर सकते हैं। आप देख रहे हैं कि भारतीय रहेगी, जिसकी छटा संसार प्रेममय द्रष्टि से देखेगा राष्ट्रीय क्रान्ति में आज देश के नवयुवक आगे आकर और जिससे हमारे मन एवं पाण अलौकिक अनिर्वकिस प्रकार अपने सुखोंका बलिदान कर रहे हैं, किस चनीय तथा अकथनीय आनन्द से अभिभूत हो उठेंगे। प्रकार राजसो महलों और ठाठों को लात मार कर इसलिये आओ ! कर्मक्षेत्र में आओ। जीवनका त्याग-भावना से ओत-प्रोत होकर सर्वस्त्र को देश की रहस्य सीखो, उन्नति का मन्त्र फूको, नवविधानका शंख बलि-वेदी पर चढा रहे हैं। कर्त्तव्य के सामने आज बजाओ और.अपनी सामाजिक कुप्रथा और प्राचीन उन्होंने अपनी मुकुमार, सुकोमल, सुपमामयी मनो- कुरुढियों का अन्त कर दो। दकियानूसी खयालो को वृत्तियों का हनन कर दिया हैं और कर्मक्षेत्र में वीर ठुकरादो, उदार भाव ग्रहण कर जा कुरीतियां हमारी बन कर कूद पड़े हैं तब क्या हमारे नवयुवक इस जडों पर अधात कर रही हैं जिनमें व्यर्थ व्यय वृथा श्रम उन्नति की दौड में किसी से पीछे रह जायेंगे ? और और आडम्बर के अतिरिक्त कोई सार नहीं है, जिन्होंने अग्रणी होटर बद्ध परिकर होकर जातीय रण- हमारे दाम्पत्य-जीवन को नष्ट कर दिया है, जिनसे संघर्पमें न कूद पडेंगे? हमारा समाज प्रजनन शक्ति से क्षीण और दुर्बल हो नहीं, हम कभी अपने युवकों से ऐसी आशा गया है, जिनसे हमारी मानसिक शारीरिक और मेधानहीं कर सकते। हम यह ध्यान में भी नहीं ला सकते वी शक्तियों का हृास हो गया है, जिनसे हमारा कि उन्नति के इस नवयुग में, जीवन की इस दौड समाज मात-जाति के अभिशापों का पात्र हो उठा है में जब देश की उज्ज्वल नदीन आशाएं अपनी कर्म- उनका अन्त करदो, उनको नष्ट-भ्रष्ट कर दो और ण्यत। और मनस्विता का ऐसा ज्वलन्त - उदाहरण हमे दिखा दा कि हमें दिखा दो कि उन्नति केवल सभा सोसाइटियोंके प्रत्यक्ष रख रही हैं तब भी हमारी आशापं तब- प्रस्ताव पास करने में नहीं है बल्कि हम लोगों की स्था में ऊंघती रहेंगी। प्रत्येक देश जाति और नव-जागृति और उत्साहपूर्ण कार्यों में है। (अपूर्ण) समाज की उन्नति का मूलमन्त्र है उसके Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain युवकों की जागृति । और उन्हीं पर जातीय, मामा- Bhaskaroday P. Press, Dhunji Street, Bombay जिक और राजनैतिक उथल-पुथल हुवा करती हैं। and published by Harilal N. Mankar for | यदि आज देश की नव-शक्तियां जायए न होती तो Pydhoni, Bombay 3. Shri Jain Swetamber Conference at 20
SR No.536271
Book TitleJain Yug 1931
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1931
Total Pages176
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size12 MB
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