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________________ * जैन युग. % 333 वीर संवत् २४५७. हिन्दी विभाग. ता. १-३-३१. कविवर श्री कन्हैयालाल जी के आज हम क्या करते हैं ? भाषण का कुछ अंश. जैन मूत्रों में यत्र तत्र जहां तहां देखिये वहीं महावीर के पहिले क्या था? समताभाव के सिद्धान्तों पर जोर दिया गया है। संसार में मिथ्यात्व की घटा छाई हुई थी। प्रत्येक स्थल पर राग-द्वेश-हीनता की महिमा गाई दुराचार, अत्याचार, वैर, विरोध, और हिंसा की गई हैं। परन्तु हमने इसे आधुनिक युग में केवल सारे संसार में लहर फैली हुई थी। राजदण्ड क्रूरता सैद्धान्तिक और मूत्रीक रूप ही दे रखा है। इसे के हाथमें पहुंचा हुआ था। धार्मिक भावनाएं शिथिल केवल शास्त्रोक्त धार्मिक बात समझ कर ही सन्तोष हो गई थी, संगठन का नाम नहीं था, मिथ्यामत का कर लेते हैं कार्यात्मक नहीं बनाते। हम देखते हैं विचार जोरों से बढ़ रहा था। हवन कुण्ड मूक पशुओं कि जितनी उच्चविभूतियां संसार में अवतीर्ण हुइ हैं के रूधिर से भरे हुए थे। उन्होंने ही इस नाशकारी भेदभाव को मिटाने का महावीर ने क्या किया? यत्न दिया है। उन्होंने ही इस विनाशक भावकी नीन्दा अखिल देश में ऐसा ही घोर हिंसा का की है। भगवान् महावीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामसाम्राज्य छाया हुवा था; तब भगवान महावीर भूतल चन्द्र, महात्मा बुद्धदेव, महात्मा मोहम्मद और पर प्रक्ट हुए। उन्होने विश्व में अत्याचार, हिंसा, द्वेष महात्मा इसा तथा प्रस्तुत कालीन महात्मा गांधी और ईर्ष्या के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया, मिथ्यामत का सभी भेदभाव छुत अछुत अच-नीच को समदृष्टि से खण्डन किया। सत्यका मूर्य चमक उठा, रुधिर की देखने का उपदेश कर गये हैं और करते हैं। परन्तु धारा वन्द हो गई, सत्य धर्म की जय हुई और सबके न जाने इस देश का कैसा दुर्भाग्य है कि हम अपने हृदय में विश्व-प्रेम, विश्व-वन्धुत्व और अहिंसा का " धर्म के नाम पर परस्पर लडते हुए भो अपने धर्म व्यापक भाव भर गया। भगवान् आजीवन सद्धर्म नेताओं के आदेश पर नहीं चलते। जिन छोटे छोटे सत् सिद्धान्त और सत्य मार्ग को प्ररूपणा में लगे सूक्ष्म सिद्धान्तों पर धार्मिक नेताओं का मतभेद है रहे। ऊंच नीच का भेद मिटा दिया, सब पर साम्य उन पर परस्पर सिर फोड कर धर्म के साथ ही भाव रखने का आदेश दिया। अपने सिद्धान्तोंका जाति, देश और समाज को रसातल ले जाने के लिये मूत्र रूपमें प्रचार किया। भगवान, औदार्य, प्रेम, और तैयार हैं। परन्तु जिस तत्वकी सारे धार्मिक नेताकरुणा के आगार थे। उनके हृदय में किसी के लिये ओ ने एक स्वर से प्रशंसा की है और जो देश जाति कोई भेद भाव न था, राग द्वेष न थ। उनकी भुजार और समाज के लिये उन्नति विधायक हैं उस पर जिस प्रकार ब्राह्मण आदि द्विजातियों को गले लगाती विचार करना भी हेय समझते हैं, व्यर्थ समझते है। थी, उसी प्रकार शुद्ध और चाण्डालको गले लगाने बात २ पर आज कल गच्छों मे परस्पर दल बन्दियां के लिये खुली हुइ थीं। सारे संसार के ऊच नीच होती हैं, परस्पर कटु आक्षेप होते हैं। हमे जैना नुयाइयों की यह आपस मे लडते की वीरता देख कर ताभाव से आकर खड़े होते थे। इस प्रकार संसार महान महान् खेद होता है। में अटल शान्तिका राज्य स्थापित कर ऐक्य मन्त्र का (अपूर्ण) पाठ पढा कर, सभीको ऐक्य मूत्र में बान्ध कर विश्व - महा मघर मोहमदी कारूण्य-धारा बहा कर दया और Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain Bhaskaroday P. Press. Dhunji Street, Bombay अहिंसा को ध्वजा उडा कर विश्व विजयी हो कर and published by Harilal N. Manker for भगवान् निर्वाण पद को प्राप्त हुए। Shri Jain Swetainber Conference at 20 Pydhoni, Bombay 3.
SR No.536271
Book TitleJain Yug 1931
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1931
Total Pages176
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size12 MB
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