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________________ जैन युग. वीर संवत् २४५७. हिन्दी विभाग. ता. १५-१-३१. श्री आबु तीर्थ और साप्ताहिक कर. -आवश्यक सूचनाए. - शेठजी कल्याणजी परमाणंदजी. कॉन्फरन्सकी स्टेन्डींग कमीटिके सभ्योंसे निवेदन. सिरोही (राजपुताना ) मा पत्र. कॉन्फरन्सके बंधारण आधीन कमीटिके प्रत्येक ता. १-१-१९३१. सभ्यको प्रतिवर्ष कमसे कम रुपये पांच श्री सुकृत श्रीमान् स्थानिक महामंत्री, भंडार फंडमें देना चाहिए। यह रकम कार्तिक शुद श्री जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्स, बोम्बे. १से चार महिने के अंदर मिल जाना चाहिए, अन्यथा आपके दो पत्र ता. ११ व १६ डिसेंबरके कमिटीको अधिकार है कि वो चंदा न आने से खाली आपहुंचे। जवाबमें निवेदन है कि ज्योंही हमको पडे हुए स्थानपर अन्य नियुक्ति करे। अत: जिन मालुम हुआ कि राजकी तरफसे जो इन्सपेक्टर आबू जिन महाशयोंने अभी तक अपना वार्षिक चंदा नहीं देलवाडेपर मुंडका वमूली को रहेता है उसने यात्री- भिजाया हो उन्हें शिघ्रही वह भिजवा देने के लिए यांसे सात दिनसे जियादा ठहरनेपर जबानी हुक्मसे विनंति की जाती है। और मुंडका मांगा, हमने एक तार श्रीजी दरबार - पाठकसे निवेदन. - साहेब बहादुरकी सेवामें भाबूरोड मुकाम भेजा, और जैन युगका यह द्वितिय अंक आपकी सेवामें एक रिपोर्ट यहांपर रेविन्यु कमिश्नर साहेबको दी है। भेजा जा चुका है। हमें विश्वास है कि इस पत्रकी हम जवावकी इन्तजारमें थे इसलिए आपको कोई । नीति-रीति आदिसे आपकी संतोष मिला होगा। उत्तर नहीं दे सके। चके आपकी तरफसे ताकीद आगामी अंक वी. पी. द्वारा आपकी सेवामे भेजा होने लगी और शेठ जीवनचन्दजी धरमचन्दजीने जायगा जिसे स्वीकार अवश्य करेंगे एसी आशा है। यहां आकर और ताकीद की है, इसलिए तार वो यदि ग्राहक बननेकी इच्छा नहीं हो तो कृपया पत्र रिपोर्टकी नकल वो चीफ मिनीस्टर साहेबकी तरफसे , द्वारा मूचित करें। वी. पी. के खर्चसे बचनेका जो मेमो आया उसकी नकल उसके साथ भेजी है । उपाय-इस अंकके माप्त होते ही-लवाजम रु. २) दो .. इस दरामयानम श्री दरबार साहब वहादुर भिजवा देना है। वी. पी. नही स्वीकार कर वापिस से रोवरू भी अरज कोई गई, जिसपर फरमाया के लोटानेसे संस्थाको फजूल खर्चमें उतरना पडेगा, संवत् १९३८ के ठहरावके खिलाफ अमल नहीं होगा, I H, इसका ध्यान रखें। और इन्सपेक्टरने बेसमझीसे जो कारवाई यात्रीयोंके । श्रीधुलचंद बालचंद सैलानासे अपने पत्रमें लिखते हैं कि:साथ की है उसके लिए योग्य किया जावेगा। रिया जैन युगका प्रथम अंक प्राप्त हुआ। सामग्री स्तकी तरफसे जवाब आनेका इन्तजार है, मिलनेपर समयानुकूल है। हिंदी विभाग रखा है, यह देख हर्ष तो उसकीभी नकल आपको भेज दीई जावेगी। अब हुआ, परंतु साथ हीमे इस विभागके पोपणके लिए नयेसर यात्रोयोंको मुंडके बाबत कोई हरकत नही लेख आदि आपको मिलते रहेंगे वा नहों इसके लिए कर शंका हुई। पंजाब और यू.पी पर आप दृष्टि डाले, रहे हैं. बादमे लिखेंगें। वहांसे आपको कुछतो जरूर मिलेगा। मैंभी अपने सोहलियतसे काम निपट जावे एसी जोशि- मित्रोंगो लिख देता है। जैन युग'का डंका प्रत्येक शमें हैं क्योंकि आप जानते हो है कि मामला लम्बा जैनके कानोंतक पहुंचे और यह समाजका श्रेय साधे। करनेमें कोई फायदा किसोकोभी नहीं हो सक्ता। --- Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain फक्त ता० सन. सदर. सही................मोदी. Bhaskaroday P. Press, Dhunji Street, Bombay मुनिम कारखाना देलवादा. and published by Harilal N. Munkur for Shri Jain Swetamber Conference at 20 पेढी शेठ कल्याणजी परमाणंदजी सिरोही. Pydhoni, Bombay 3.
SR No.536271
Book TitleJain Yug 1931
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1931
Total Pages176
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size12 MB
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