SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन युग. वीर संवत् २४५७. हिन्दी विभाग. ता. १५-९-३१. श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल खर्च में रियायए भी की जा सकती है । इस साल गुरुकुलमें पंजाब गुजरांवाला। नवमी कास तक की पढाइ है अगलो वर्ष दसवी कक्षा ( Matriculation) तक हो जावेगी। जो माता पिता श्री आत्मानन्द जैन गुरुकुल पंजाब गुजरांवाला पंजाब अपने बच्चोंको उच्च शिक्षा देने उनके विचार तथा आचार भर में अकेली एक एसी संस्था १९२६ से स्थापित है कि । को स्वच्छ बनाने और उनको स्वतंत्र आजीविका पैदा करने जिसका उद्देश्य जातीय शिक्षा है। विद्यार्थी जैन अजैन सभी के योग्य बनाने के इच्छुक हों उनको तत्काल अपने बच्चों लिये जाते हैं। वर्तमान शिक्षा पद्धति के प्रभावसे को इस संस्थामें प्रविष्ट करा देना चाहिये । विद्यार्थी कम से बचाने के लिये इस संस्थाने विद्यार्थियोंकी शिक्षाका एसा कम आठ वर्षका हो और तीसरी कक्षाकी योग्यता रखता हो। ग्रबन्ध किया है कि जिससे वि० सादा से सादा जीवन विशेष विवरण गुरुकुल कार्यालय से पत्र व्यवहारद्वारा या व्यतीय कर सके। परिश्रम स्वभावी हों, ब्रह्मचर्य व्रत पालन स्वयं पधारकर मालुम करनेका कष्ट उठावें। कर सकें. उनके विचार और क्रियाओं में सच्चाई शिष्टाचार सेवक, मानद अधिष्टाता. देशप्रेम धार्मिक सहिष्णुता और विशाल दृष्टि इस प्रकार श्री आत्मानंद जैन गुरुकुल पंजाब गुजरावाला. आजाए कि उनके ये गुण स्वभाववत् जीवन पर्यन्त दिखाई ( मनुसथान. १४० ७५२०.) देते रहें। इस संस्थाका माध्यम यद्यापि हिन्दी है तथापि या भ3, या यानी 0 .) ! संस्कृत, उर्दू, अंग्रेजीभी पर्याप्त सीमा तक पढाई जाती हैं। આજ રીતે ખુબ કઠિન છે. નીચે ઉંડી ખીણને ઉપલામાં विद्यार्थीपर बोझारुप होने वाले विषयोंका भार नहीं डाला સીધા ખડકા છે. વળી રસ્તામાં આ સુવાળું ઘાસ છે અને पाता थुपता नथी (पामे पामे मागा याने छे.) जाता । वि. के स्वभाविक झुकावका विचार रख कर उनके शोर यासीनते ५ ये आम ३२ता नथा. शु लिए सुविधाए. पुह चाह जाती हैं । इतिहास बिलकुल राष्ट्रीय ३१ मा वि भामा निशा रात ५सा२ थाय! दृष्टि कोन से पढाया जाता है। गणित और भूगोलकी २ पेक्षी सभा वासणा पागती सणार. अ५७i उपयोगी जानकारी भी करादी जाती है। वि० गल्कलमे गायले. त्या पाया पन तिा नलि. (पाम धाम ચાલે છે.) જરા ઝડપથી ચાલવા દે-નહિં તે રાત્રિ પહેલાં निकाल कर सरकारी स्कूलोंसे निकले हुए विद्यार्योकी भांति નાત ત્યાં પહોંચવું અશકય છે. પણુ આ પગ કામ કરતા નથી ! निराश हो कर आजीविका के लिये न भटकते फिरें अतः (२ गया थाले - मारdi Meghi im 43 .) गुरुकुलने वि० के लिये आजकल जिलद साजी, पत्रकार अनु............सहा.............. [ry. ] कला, कामर्स (Commerce) और दर्जीकी दस्तकारी और eeeeeeeeeeeewa हुन्नर प्रारम्म से ही सिम्बलानेका प्रबन्ध किया है। वितैयार छे! सत्प३ मा अपनी रूचि तथा शक्तिके अनुसार इन में से एक हुन्नर या दस्तकारी ले लेता है । गुरुकुलकी अपनी हमाल बनने पर श्री जैन २ विमा भाग २. जो कि शीघ्र ही तयार होने वाली है खेती और ड्रायंग, साशरे १००० ६२ अंथ अदि की भी बतौर उद्योगके बढौतरी हो जावेगी। वि० को बलवान दृढ विचार और उच्च चारित्रवान बनानेका विशेष प्रयत्न किया जाता है। शिक्षण और रिहायश के लिए कोइ2 सादप शुदि १५ सुधी पी . ३. २॥2 फीस नही ली जाती। अन्य प्रकारके खर्चके लिये प्रारम्म में भन्नेमा साथे सेनान. ३. ५॥ केवल ७) सात रुपये मासिक लिये जाते है । १ प्राप्तिस्थान:-श्रीन ३.३२-स. विशेप बुद्धिमान और योग्य विद्यार्थी के लिये मासिक ___२०, पायधुनी, मुंबई Sawwwwviaeo ... Printed by Mansukhlal Hiralal at Jain Bhaskaroliny P. Press, Dhunji Street, Bombay and published by Harilal N. Munkar for Shri Jain Swetamber Conference at 20 Pydhoni, Bombays.
SR No.536271
Book TitleJain Yug 1931
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarilal N Mankad
PublisherJain Shwetambar Conference
Publication Year1931
Total Pages176
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Jain Yug, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy