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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसपानदक्ष हे नवलयक्ष ! कमनीयमाश्रमं रक्ष रक्ष...॥१॥ त्वं शब्दसंयम ग्रीवाभङ्गं हरिणः पश्यति चक्षुर्भङ्गं हरिणी पश्यति ननु तनुभङ्ग मा तक्ष तक्ष वृश्विकासंक्रमाद् रक्ष रक्ष...॥२॥ हरिदत्तशर्मा भी गीतिकाव्यों में रामायण, महाभारत, प्रशिष्ट कृतियों के मिथक लेते हैं । 'तव स्पर्श स्पर्श' मेरे काव्य संग्रह में शकुन्तलाया उक्ति: में शकुन्तला की दुष्यन्त प्रति उक्ति में 'नारी संवेदना' देखिये अधुना शकुन्तलाया मृतकलेवरे सर्वदमनस्य माता जीवति धर्मकञ्चुकधारिणा त्वया विस्मृतं यत् शाखया लूनं प्रसून कथं पुनर्जीविष्यतीति । वयं स्त्रियः विधात्रा नेत्रजलनिर्मिताः । वयं स्त्रियः परमेश्वरनिःश्वासरचिताः । वयं नार्यः परमेश्वरेण निर्मितं दुःखं भोक्तुमेव सृष्टाः । किन्तु प्रश्नमेकं पृच्छामि यद्वनवल्लीपालनासमर्थेन भवता कस्माद् वनाद् उन्मूलिता लता ? कस्माद् वनाद् उन्मूलिता लता ? (तव स्पर्शे स्पर्शे पृ. १११) 'रामायण' के मिथक को लेकर 'वर्तमान भारत को कवि इस तरह चित्रित करता है । : 90 सामीप्य : पु. २५, संड 3-४, मोटो. २००८ - भार्थ, २००८ For Private and Personal Use Only
SR No.535849
Book TitleSamipya 2008 Vol 25 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR T Savalia
PublisherBholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
Publication Year2008
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Samipya, & India
File Size15 MB
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