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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम सत्र : (असमासे निष्कादिभ्यः1 में निष्क का प्रयोग किसी वस्तु के खरीदने के लिये सिक्के के रूप में हुआ है। जिस प्रकार से 'पाद', 'पण' और 'माष' का प्रयोग होता था उसी प्रकार से निष्क का प्रयोग होता था ।। द्वितीय सूत्र : (द्वि-त्रि पूर्वान्निष्कात् )१७ में दो अथवा तीन निष्फों से विनिमय किया गया है जिसके लिये द्वि निष्कम् , द्वैनष्कम् त्रि निष्कम् तथा त्रि नैष्कम् आदि का प्रयोग हुआ है। तृतीय सूत्र :८ (शत-सहस्रन्ताच्च निष्कात् ) के अनुसार जिस व्यक्ति के पास सौ निष्क होते ये उसे नष्क शतिक' की संज्ञा दी जाती थी। इसी प्रकार से जिस व्यक्ति के पास १००० निष्क होते थे उसे 'नैष्क साहसिक' की संज्ञा दी जाती थी। ये संशाये निश्चित रूप से व्यक्ति सम्पन्नता की सूचक हैं ।१४ महाभारत में भी १०० तथा १००० निष्क रखने वाले दो श्रेणी के व्यक्तियों का उल्लेख है। पतंजलि के महाभाष्य में भी 'निष्क धन' तथा 'शत निष्क धन' का उल्लेख है। धातु : 'निष्कर की धातु के विषय में भी निश्चित रूप से कुछ भी उल्लेख नहीं है। काशिका के अनुसार२२ निष्क के आगे सुवर्ण का प्रयोग नहीं किया जाता है। क्योंकि निष्क का तात्पर्य स्वयं ही सुवर्ण सिक्का होता है। शतपथ ब्राह्मण२३ के अनुसार उद्दालक के प्रतिस्पर्धी स्वंदायन को पुरस्कार स्वरूप निष्क दिया गया था । निष्क स्वर्ण का ही था। कुहुल जातक२३ में भी स्वर्ण के १०० निष्कों का उल्लेख है। महाभारत के अनुसार भी स्वर्ण के १०८ निष्क धन की इकाई थे । वेस्सन्तर जातक२५ के अनुसार वेस्सन्तर से, उसके ही पुत्र को पुनः खरीदने के लिये १०० निष्क मांगे गये थे । जुण्ह जातक भी १००० से अधिक निष्कों का उल्लेख करता है। संभवतः निष्क के अवगुणज (Sub-mutiples) भी थे । भण्डारकर के अनुसार 'पाद' स्वर्ण निष्क मांगे की एक इकाई थी। इसी आधार पर उनका मत है कि मिथिला के राजा जनक द्वारा विद्वान ब्राह्मणों को दिये गये २० हजार पाद इसी प्रकार के सिक्के थे ।२६ पाणिनि के सूत्र ‘पण-पाद माषशताद्यत' को भी इसी अर्थ में लेना चाहिये ।२७ डॉ. उपेन्द्र ठाकुर२८ का मत है कि जनक द्वारा दिये गये ‘पाद' को तो सोने के सिक्के माना जा सकता है लेकिन पाणिनि ने पण के साथ पाद का प्रयोग किया है और पण का सम्बन्ध चांदी के कार्षापणों से है जिसका उल्लेख कौटिल्य ने भी किया है२४ । अतः पाद के स्वर्ण मुद्रा नहीं माना जा सकता है । पतंजलि30 ने भी 'पणनिष्क' तथा पाद निष्क को स्वर्ण निष्क का ही अवगुणन माना है। मनु तथा याज्ञवल्क्य३२ के अनुसार भी निष्क%४ सुवर्ण% ३२० रत्ती, पाद निष्क- १ सुवर्ण = ८० रत्ती । . अर्थात् पाद निष्क तथा सुवर्ण समानार्थी शब्द थे। जिनको तौल ८० रत्ती थी। निष्क का केवल . उल्लेख ही मिलता है। वास्तविक रूप में ये प्राप्त नहीं होने के कारण इसकी तौल निश्चित रूप से कहना अत्यंत कठिन है। 1081 [ Samipya: April, '91-March, 1992 For Private and Personal Use Only
SR No.535779
Book TitleSamipya 1991 Vol 08 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravinchandra C Parikh, Bhartiben Shelat
PublisherBholabhai Jeshingbhai Adhyayan Sanshodhan Vidyabhavan
Publication Year1991
Total Pages134
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Samipya, & India
File Size80 MB
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