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અજ્ઞાત બાલાવખેાધમય ટીકા
३-४ ]
जेसलमेर के बड़े भण्डार में जब वे गये थे बहुतसी पुरानी प्रतियों के त्रुटित पत्र पढ़े थे । सम्भव है कुछ तो उन त्रुटित पत्रों को बेकार समझकर जल - शरण कर दिया हो, कुछ लोग उठाकर के गये हों इस तरह हमारे प्राचीन साहित्य का बहुत बड़ा विनाश हमारी अज्ञानता और असावधानी के कारण हुआ है।
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जिनमें से एक अज्ञात ग्रन्थ का परिचय यक्ष प्रकाशित कियी जा रहा है ।
उत्तराध्ययन और कल्पसूत्र इन २ आगमों की जितनी संस्कृत व भाषा टीकायें मिलती है' उतनी और किसी आगम की नहीं मिलती जिस अज्ञात ग्रन्थ का परिचय यहां दिया जा रहा है वह उत्तराध्ययन के २६ वें सामाचारी अध्ययन का बालावबोध है। इस व्याख्या का नाम आचारदीपिका रखा गया है और इसे दिन कृत्य प्रकाश और रात्रि कृत्य प्रकाश इन दो भागों में विभक्त किया गया है । चारी अध्ययन के ३५ गाथा तक का विवरण प्रथम प्रकाश में और उसके बाद का द्वितीय प्रकाश में है। प्रशस्ति के अनुसार संवत् १५४५ जैत्रपुर देवसिंह बस्ती में संघपति गुणराज पुत्र सं काढू के लिये यह बालावबोध व्याख्या जिननंदीगणी के शिष्यने बनाई थी । १९ पत्रों की तत्कालीन लिखी प्रति अभी हमारे संग्रह में है ।
सामा
आज भी फुटकर पत्र और खंडित व अपूर्ण प्रतियों को लोग बेकार समझकर उन्हें जहां तहां हाल देते हैं । साधारण व्यक्तियों की तो क्या कहे बड़े बड़े विद्वान् मुनिराज भी ऐसी सामग्री को व्यर्थ का कचरा समझकर ज्ञानमृण्डारों की सूची बनाते समय उन्हें यों ही छोट देते हैं। जब कि बहुत बार उनमें बहुत ही काम की और अज्ञात सामग्री प्राप्त होती है। हमने गत ३५ वर्षो में ऐसी उपेक्षित सामग्री में से बहुत सी महत्त्वपूर्ण प्रतियां प्राप्त की है। अभी अभी अजमेर से साध्वीजीने मुझे ऐसे ही खन्तड़ का एक बन्डल भेजा
आदि अन्त इस प्रकार है
आदि- सामाचारी प्रदं वीरं सामाचारी घरं गुरुं ।
अन्त - सामाचारी विदं देवी वंदे सद्बुद्धि हेतवे ।। १ ।। .
इति श्री उदयनन्दिसूरिशिष्य पं. रत्ननन्दिगणि पं. जिननन्दिगणि शिष्यवृतायां । सं. गुणराज सुत सं. कालू कारितायां २६ मोत्तराध्ययनस्याचारदिपिका नाम वार्त्तामयव्याख्यायां रात्रिकृत्यप्रकाशयो द्वितीय: "प्रकाशः ॥
सूरीन्द्रोदयनन्दिवाचकपदप्रासादपुण्य क्रिया-:
चार श्रीगुणराज सङ्घपतिम् कालू कृताभ्यर्थनः ।
आचारादिमदीपिकां व्यरचयद् व्याख्यां सुवार्त्ताभयी षट्विंशाध्ययनस्य इन्द्रविजयो वर्षेऽसवेदात्तिर्थो ( १५४५ ) ॥ १ ॥
( अनुसधान पेट ३६ ५२ )
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