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અંક ૩-૪ ] શ્રીમદ્ દેપચરંજી કૃત “જગતમેં સદા સુખી મુનિરાજ સઝાયરો બાલાવબોધ ,
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आसान धरै काहू की, न कबहु पराधीन । चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ॥ ६ ॥ तप संयम पावक वसे, दहे प्रमाद दुःख झीन । चक्रवर्ति त अधिक सुखौ, मुनिवर चारित लीन ॥ ७ ॥ पदगल जीव की शक्ति सब जात सप्त भय हीन । चक्रवर्ति ते अधिक सुखी मुनिवर चारित लीन ॥ ८ ॥ सप्तम गुण थानक रहे, कियो मोह मसकीन ।' चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ॥ ९ ॥ क्षपको-पषम पैड़ी चढ़े, आत्म रस सुधीन । चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित टीन ॥१०॥ तुर्य-ध्यान ध्यावत समै, किये कर्म सब छीन । चक्रवर्ति से अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ।। ११ ॥ देवचन्द बावै सदा, यह मुनिवर गुण बीन ।
चक्रवर्ति ते अधिक सुखी, मुनिवर चारित लीन ॥१२॥ इति माकृत भाषया समस्यां दोधक द्वादश कृता पं. देवचन्द्रेण ।।
.. प्यारा वीरजिनेश
रचयिता : राजमल भंडारी, आगर जय जय प्यारा वीर जिनेश, जय जय प्यारा वीर जिनेश, जय जय प्यारा, सतत सहारा, दुःखियाओंका दुःख निवारा ॥
। सकल जगत निज, धरम प्रसारा । .. हर दम हरत क्लेश, जय जय प्यारा वीर जिनेश ॥ जय० वीर जिनेश है जगतेरा, दे उपदेश दया--विशेष । . मेटा अधरम रहा न लेश, अब तक गुण गावत सब देश ॥ जय० जो प्रभु तूं नहीं जगमें आता, सञ्चा मारग कौन बताता ।... मोह नींदसे कौन जगाता, ब्रह्मा, विष्नु, महेश ॥ जय० तूं ही है सबका हितकारी, नाम लेत मिटता दुःख भारी । मिलती है सुख सम्पत्ति सारी, अघ की चले ना .पेश ॥ जय.
पर हित में नित यह मन लागे, ईर्षा द्वेष सभी अब भागे । . प्रेम निरन्तर घट में जागे, वर दो यही हमेश ॥ जय० . बुद्धि हमारी निर्मल की जे, हमें चरण की सेवा दीजे । . बीर भक्त की. भी सुधि लीजे, कृपा करो करूणेश ॥ जय०
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