SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीमद् देवचंदजी रचित एक पद का विवेचन लेखक : अगरचंद नाहटा श्वेताम्बर जैन-सम्प्रदाय के आध्यात्मिक महा-पुरूषोमें श्रीमद् आनंद घनजीके बाद श्रीमद् देवचन्दजी हुए जिनकी संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी, गुजराती व हिन्दी में बहुत सी रचनाएं प्राप्त है; श्रीमद् आनंदघनजी की चोवीसी के बाद श्रीमद् देवचन्दजीकी चोवीसीकी ही सर्वाधिक प्रचार है । आध्यात्म और . भक्तिका जितना साधिक समन्यय या तात्विक विवेचन देवचन्द जीकी चोवीसीमें हुआ है उतना अन्य किसीकी भी चोवीसीमें नहीं मिलना । सौभाग्यवश उन्होंने स्वयं अपने चतुर्विंशति स्तवनोंका बालावबोध अर्थात् विवेचन लिख दिया इसलिए उनके भावों को ठीक से समझने में सुविधा हो गई वीसी और अतित जिन चोवीसी तथा सझायों आदि पर उन्होंने विवेचन नहीं लिखा उस कमी की पूर्ति परवर्ती आध्यात्मप्रेमी मुनियों एवं श्रावकों ने की है। उन विवेचन कर्ताओं में मस्तयोगी श्रीमद् ज्ञानसारजी विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन्होंने श्रीमद् आनंदघनजी की चोवीसी और पदों पर बालावबोध नामक विवेचन लिखा उसी तरह श्रीभद् देवचन्दजी के आध्यात्म-गीता और साधु-सझाय की बालावबोध बनाया। इनमें से साधु-सझाय की वालावबोध श्रीमद् देवचन्द्र भाग२के अंत में प्रकाशित हो चुका है। आध्यात्म गीता बालावबोध की एक ही प्रति हमें मिली और श्रीमद् ज्ञानसार ग्रंथावली में उसे छपवा भी दिया था पर दुर्भाग्यवश उमके छपे हुए फर्मे भारत विभाजन के समय एक मुसलमान जिल्द-साज के यहां ही रह गये I. . . . . . . श्रीमद् देवचन्दजी की रचनाओं में सबसे अधिक आकर्षित किया योगनिष्ट आचार्य बुद्धिसागरसूरिजी को । उन्होंने बहुत ही प्रयत्न करके जितनी भी छोटो बडी रचनाएं आपकी मिल सकी अनेक भंडारों में खोज करके उन्हें संग्रही करवाई और श्रीमद् देवचन्द के २ भागों में अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मंडल, पाटरा से प्रकाशित करवा दी। इस संग्रह ग्रन्थ के प्रथम संस्करण में तो रचनाएं जैसे जैसे मिलती गई वैसे ही छपवा दी थी पर दूसरे संस्करण में उनका वर्गीकरण करके गद्य और पद्य के २ भाग अलग अलग प्रकाशित किये गये । इनमें ज्ञानमंजरी टीका आदि समाविष्ट न हो सकी उन्हें सम्मवत: तीसरे भाग में प्रकाशित करने की योजना होगी, पर वह भाग प्रकाशित नहीं हो सकी । जैसलमेर भंडार एवं अन्य कुछ भंडारों में मेरी खोज से कुछ और अज्ञात रचनाएं प्राप्त हुई जिन्हें समय समय पर प्रकाशित करता रहा हूं।' श्रीमद् देवचन्दजीकी रचनाओंमें से वीसी, अनागत चोवीसी, आध्यात्म गीता, अष्ट प्रवचन माता, आदि स्वनाओंके गुजराती भाषामें विवेचन प्रकाशित हो चूके हैं, पर हिन्दी नहीं हुए थे इसलिए चन्दनमलजी नागोरीने स्नात्रपूजाका अर्थ प्रकाशित किया था । गत वर्ष चोवीसी तथा. स्नात्रपूजाका हिन्दी विवेचन श्री अमरावचंदजी दरगड़ रचित जिन्नदत्तसूरि सेवा संघ, बम्बईसे प्रकाशित हुआ है। दरगड़जीने आध्यात्म गीताका हिन्दी For Private And Personal Use Only
SR No.533910
Book TitleJain Dharm Prakash 1961 Pustak 077 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1961
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy