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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (१४०) શ્રી જૈન ધર્માં પ્રકાશ आंaा आपणा करइ काम सकज पणि परनी न करइ सार रे । भार भूत पृथिवी माता नइ, ते कांइ सरज्या नगरशेठ ते नर अधिकारी, पुरुष रतन ते 'समयसुन्दर' कहइ ते नर साचा, जे पर नइ करइ इति परोपगार गीत | www.kobatirth.org " करतार रे || २ || ए० ॥ अपार रे । उपगार रे || ३ || ए || ३ वेतन शिक्षा ( राग-धन्याश्री ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेतन अब यह कारिज कीजै । तन जड़ संग अनादि संयोगी, निज पद वास वसीजइ ॥ १ ॥ चे इह जड़ प्रगट वीस गुनधारी, खिण खिण अंतर छीजै । सुं तर गुपति अनादि त्रिगुणमय, कैसी प्राति वहीजें ॥ २ ॥ ३० भटक सुं छंद दिखाने अवसर, यद्यपि बहु पोसीजै । विण स्वारथ सिंग काम न आवै, ते साजण न कहीजै ॥ ३ ॥ ० करि अनुभव निज सपंद केरौ, ज्यु इह दृष्ट ठगीजै । 'समयसुन्दर' कहे सुणि जीउ मेरे, ज्ञान सुधा रस पीजै ॥ ४ ॥ चैः चार तीर्थकर प्रतिमागीत ( रागभयरव ) सासता तीर्थकर प्यार, मनवंछित सु विना बांदूं रिषमानंद ब्रद्धमान, चंद्रानन वारिषेण स्वर्ग मृत्य अनै पाताल, त्रिभुवन प्रतिमा नमुं त्रिकाल पांच धनुष देह प्रमाण, वांचन वर्णो काया जान अनादि अनंत एहीज नामठाभ, समयसुंदर करि नित प्रणाम इति सासता ॥ ४ ॥ च्यारर तीर्थंकर प्रति गीतं । For Private And Personal Use Only [ असो दातार ।। १ ।। सा० प्रधान ॥ १ ॥ सा० ॥ २ ॥ सा० ॥ ३ ॥ सा० ॥। ४ ॥ सा० मौन इग्यारसी लघु स्तवन जगदीश ॥ १ ॥ नेम । अपार ॥ २ ॥ मौन इग्यारसी मोहम् पर्व, अठ पहुरी पोष करई सर्व । मौनपणुं पालइ निस दीस, ध्यान चारई एक तुं तप करई बरस इग्यारह सीम, जाव जीव करई के पारणई पड़िला भई अणगार, साहमिनी करई भगति पूजमणं करइ अति श्रीकार, ज्ञानना उपयण इग्यार इग्यार । देहरइ स्नात्र नइ पूजा करई, सरवरउ ठोणउ आगइ मौन इग्यारसी नऊ अधिकार, पारसनाथ प्ररुण्य उ सार । समयसुन्दर कहइ करिस्यइ जिके, मुगति तिणा सुख लइ एमई तिके ॥ ४ ॥ चारई ॥ ३ ॥ इति श्री मौन इग्यारसी लघु स्तवनम् ।
SR No.533907
Book TitleJain Dharm Prakash 1960 Pustak 076 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1960
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size7 MB
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