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પુસ્તક ૭૫ મુ २५
જેનવમ પ્રકાશ
ફાગણુ
श्री शांतिनाथ भगवान का स्तवन प्रभु शांति शाँति शाँति, तोरी अद्भुत सोहे कान्ती भवी भेटीया भवदुःख जाय || टेर || विश्वसेन अचिराजी के नँदा, दर्शन किया दुख जाय ॥ १ ॥ जन्मसमय प्रभु मरकी निवारी
पारेवा की जान बचाई, दीघो है अभय दान ॥ २ ॥ मृग लंच्छन सोलमा जिनेन्द्रा
चकरी पांचमा हो सुखकंदा, प्रभु नाम सदा सुखकार || ३ || अतिशाँति में तोरा गुण गाया ister मुनिराया, भवि अजितशाँति अर्थ मनमें धारणा ॥ ४ ॥ . मैं चोरासी लक्ष योनी में भ्रमोयों
मुझे अनाथ को नाथ तूं मिलियो, भवजल पार उतार ॥ ५ ॥ शान्ति प्रभु शान्ति के दाता
घ्यावे सोही पावे सुखसाता, तुम हो शान्ति तथा भंडार ।। ६ ।। समदृष्टि है प्रभुं नाम तुम्हारो
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लक्ष्मीचन्द दुखिया को तारो, अपनो विरुद विचार ॥ ७ ॥ तेजराज लक्ष्मीचंदजी - जेतारन
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वीर सं. २४८५ वि. सं. २०१५