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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir KEDKEKOKEXSXE-KEKOKOKEKIKOKXEXXEKX = श्री जिनदर्शन महिमा == आज जन्म मम सफल हुबा प्रभु, अक्षय अतुलित निधिदातार । नेत्र सफल हो गये दर्शनसे, पाया है आनंद अपार ॥ १ ॥ आज पंचपरिवर्तनमय यह, अति दुस्तर भवपारावार । सफल हुया दर्शनसे तेरे, भटका हूं जीसमें बहु बार ॥२॥ आज नहाया धर्मतीर्थ में, तेरा दर्शन पा साकार । गात्र पवित्र हुवा नयनोंसे, छाया निर्मल तेज अपार ॥३॥ आज हुवा यह जन्म सार्थक, सकल मंगलोंका आधार। . तेरे दर्शनके प्रभावसे, पहूंचा मैं जगके उस पार ॥४॥ आज कषाय सहित कर्माष्टक, ज्वालाऐं विघटी दुःखकार । दुर्गतिसे निवृत्त हुवा में, तेरे दर्शनके आधार आज हुवे हैं सौम्य सभी गृट, शान्त हुवे मनके संताप । विष्नजालनश गये अचानक, तेरे दर्शनके सुप्रताप ॥६॥ आज महाबन्धन कमांका, बन्द हुया दुःखका दातार । सौख्य समागम मीला जिनेश्वर. तुम दर्शनसे अपरम्पार ॥ ७ ॥ आज हुवा है ज्ञान-भानुका, उदय देह मन्दिर, सार । तुम दर्शनसे है जिनेंद्रवर, सिवातमका नाशनद्वार आज हुवा हूं, पुन्यबान मैं, दूर हुये सब पागचार । मान्य बना हूं दिल में स्वामी, तेरा दर्शन पा अविकार ॥५॥ आज हुई जिनदर्शन महिना, अनगत सुझको है भगवान । सत्पथ साफ दिखाई पड़ना, खड़ा सामने है कल्याण ॥१०॥ राजमल अण्डारी-आगर ( मालवा) For Private And Personal Use Only
SR No.533860
Book TitleJain Dharm Prakash 1956 Pustak 072 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1956
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size8 MB
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