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भारली आणी सर्व नजि ગમાં થઇ જે ગઢ સર લ વ વિકાર્ડસની સિહા કુલરણી ને જગ સુખસ ઍધિની, શિવપુર પાંચ યિત સોચને વિસ્તારિો. નકર વાઢ જંગચે જે સમાન કુમારનો, દે દીપના રહેશે યુગાંતર ધર્મ જગતે शोधतो 23 કને तो આનંદને વિસ્તારતા, ચેતયુ મેનિ શીઘ્ર માર્ગ બતાવતા. ૧૦ सराय नमन रमा दमना इव्यभाव सतावतो, ડુંગરૢ અને આત્મા વિભાગી ભેદ કેદ જગ ધારણા ને ચોબ્રા સાંસાર જલધિ એ ચિંરજીવા વીરજિન લેન્દુ નિજ મન
કરાવતા તારા, ધારતા ૧૧
चैत्रमास
परम अहिंसाके ओ साधक, मौन हुवे हो क्यों तुम आज ? | पुनः गुंजादो उस वाणीको, जीससे हो सुखमय सत्र राज ॥ १ ॥ त्राहि त्राहिकी मची धुम है, नहीं शान्तिका है लवलेश । अनेकान्तका पाठ पढ़ादो, मिट जावे जीससे सब क्लेश ॥ २ ॥ asiarat तीथी चर्चाकी, बहती धारा शासनमें । छिन्नभिन्न और फूटफाटकी, प्रगटी ज्वाला शासनमें
मुरझाये सब पुष्प तत्वके, उदासीनता छाई है ।
प्रगटे कोई युगवीर विश्वमें, येही आश लगाई है माना तुम हो तीर्थंकर प्रभु, आ न सकोगे इस जगमें । आज बतादो करुण तपस्वी, रहने दोगे, कंटक मगमें
लाखों अनुयायि होते भी, नायक जीसका ऐक नहीं । सूरि सैंकड़ों होते भी, शासनकी परवाह नहीं ऐसी परिस्थिति होने से, शासन बिना धनीका लखते हैं । तीर्थ हड़पकर मन्दिर छीनते, और क्या क्या आफत ढहते हैं
अब रंग रंगमें नूतन वल भर दो, होवे अहिंसाका प्रचार । जिये चैनसे जगके प्राणी, मचे न फिरसे हाहाकार धर्मान्धता सब मिट जावेगी, रहेगा तेरा अमर संदेश | जुल्मी दयालु बन जायेंगे, सुनकर तेरा दिव्य आदेश
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राजमल
भण्डारी
आगर ( मालवा )
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