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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Dooooooooor ooooooooooor hd vo "ideooinecorpiecodiescock rooshirocess गुणीयों का गुणगान। - - धरमपुरी सहर भावनगरमें हो गये है। शानी जैन श्रावक सवरगीय कुंवरजीभाई रहे नाम । आणंदजी के सुपुत्र है आप गुणवान ॥ लाधु और श्रावको के कठीण परसनोंका । उत्तर सरलता से देते थे आप चारवार ॥ श्री जैनधर्म प्रसारक सभा । भावनगर के थे आप पीराणा ॥ श्री जैनघरमपरकास की सेवा करी हे वरस ६० इसी श्री जैन घरमप्रकास के पढ़ने से ।। हमारे जैसे अनेकों का थया है बड़ा उपकार । साधु समान गुणों के धारक थे आप ॥ साधु साधवीयो के विद्यागुरु थे आप । आपके विषय में एक दफा कहा था ॥ भावनगर के दीवान सवरगीय । सर प्रभासकर पटणी.साहेब। हमा लीरफ एक ही वयकती। सीरफ कुंवरजीभाई ही एक मीला था । हमारे से इतनी घनी सटा होने पर भी। आप सवारथ की जीलने हमसे ॥ कभी भी भी कोई तरह की नइ करी माग । एसे नीरलोभी वयकतीका ही। दुनीया करती है आदर-सनमान । हम आपसे आपके गर पर हुबहु मील करके ॥ आपके अमृतमय वाणी का कीया था पान । अब वो सुभ वेला हरदम आती है याद ॥ मद्रास से सेठ लक्ष्मीचन्द करता है। आपको कर जोड लाखो करोडो परणाम ॥ शेठ लक्ष्मीचंदजी-मद्रास. Paritala Harooo "00000" co con mnon voot mooth mo nth moscascan a Dan " For Private And Personal Use Only
SR No.533799
Book TitleJain Dharm Prakash 1951 Pustak 067 Ank 03 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1951
Total Pages32
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size11 MB
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