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viી જેમ ધર્મ પ્રકાશ प्रकाशन बहुत ही आवश्यक हैं । वैसे दृष्टिकोण से भी बड़े बड़े ग्रन्थों के नष्ट होने की आशंका कम रहती है पर छोटी रचनाओं के प्रति उपेक्षा रहने कारण नष्ट होने की बहुत ही संभावना रहती है, अतः शीघ्र नष्ट होने वाला उपयोगी साहित्य को बचा लेना आवश्यक है । इनका संग्रह कर के गुजराती या हिंदी अनुवाद सहित प्रकाशित करना हमारी प्रकाशन संस्थाओं का आवश्यक कर्तव्य है। प्रकाशित कुलक।
प्रस्तुत लेख में दी जानेवाली सूची के २५० कुलकों में से लगभग ४० फुलक प्रकाशित भी हो चुके हैं अतः मेरे अवलोकन में जितने भी कुलक मूल, भापानुवाद एवं दीका सहित प्रकाशित हो चुके हैं उनका परिचय नीचे दिया जा रहा है- .
(१) जैन विद्याशाला से प्रकाशित प्रकरणमाला में निम्नोक्त कुलक सार्थ प्रकाशित है--- १ अभव्य कुलक गा.९
६ दान कुलक गा. २० २ पुण्य कुलक गा. १०
७ शील कुलक गा.२० ३ पुण्य पाप कुलक गा. १६ जिनकीर्ति । ८ तप कुलक गा. २०.. ४ गौतम कुलक गा. २०
९ भाव कुलक गा. २१ देवेन्द्रसूरि ५ दानकुलक गा. २०
१० मिथ्यात्व कुलक गा. २६
| ११ आत्मकुलक गा. ४३ जयशेखर(रि) (२) श्री जैनधर्म प्रसारक सभा से प्रकाशित क्षमाकुलकादि संग्रह में सानुवाद प्रकाशित
१ आमाकुलक गा. २५
२ इंद्रियविकारनिरोध कुलक गा. ९ (३) जैन श्रेयस्कर मंडल म्हेसाना प्रकाशित कुलक संग्रह में सानुवाद प्रकाशित१ गुरुप्रदक्षिणा कुलक गा. १८ ३ पुण्यप्रभावदर्शक पुण्य कुल क गा. १० २ संविज्ञसाधु योग्य नियग कुलक४ से ७ दानादि कुलक चतुष्य
गा. ४७ सोमसुंदरसूरि ८ गुणानुराग गा. २८ जिनहर्ष, ' (४) आ. श्री सागरानंदमूरिजी संपादित इरियावहिपनि शिकादि में
१ औष्टि कमतोत्सूत्रोद्घाटन-कुलक गा. १८ धर्मसागर २ उत्सूत्रोद्घाटन कुलक गा. ३० जिनदत्तरि ३ प्रत्रज्याभिधान कुलक गा, २८
(अपूर्ण)
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