SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 02 UC תל 66 www.kobatirth.org UE GUE Ur US कुलक " संज्ञक जैन रचनाऐं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir UZNE VE Le गी ( लेखक - अगरचंद नाहटा ) जैन साहित्य - सागर में आग प्रकरण, पयज्ञा, कथा, चर्दिन, कुलक, राम, आस, राहुली, गीत, स्तन, स्तोत्र, सज्झाय, तीर्थमाला, चैत्यपरिपाटी, संधि, देि सलोका, विवाहा, संवाद, फागु आदि एवं निर्मुक्ति, चूर्णि, भाग्य, टीका, रति, अवचूरि, बाळावबोध, टया इत्यादि विविध संज्ञावाले व्याख्या प्रन्योरूपी नदी-नालों का समावेश होता है । उन सभी की स्वतंत्ररूप से शोध अध्ययन, आलोचना किये विना उसी महासागर की गरिमा एवं महना हृदयंगम नहीं हो सकती। बड़े ही खेद का विषय है कि जैव वाङ्गमय जितना विशाल एवं विस्तीर्ण है की शोध अध्ययन एवं आलोचना करनेवाले उतने हीं न्यूनतम हैं, अतः इस अमूल्य रत्नापर की ओर बहुत ही कम विद्वानों का ध्यान आकर्षित हुआ है। जिन साहित्य की चर्चा प्रत्येक सामयिक पत्र-पत्रिकाओं में, जनता के मुखों में, घर में सुं होनी चाहिये थी उसका पता इस जैन नामधारी व्यक्तियों को भी नहीं है। स्वर्गीय महाकवियों एवं वाङ्गमयप्रणेताओंने जिस आशा एवं गरोसे के साथ हमें यह अमूल्य निधि धरोहर पद की थी हम उसके योग्य संरक्षकत सके। स्वयं उसका उपयोग किया, न अन्य अधिकारी व्यक्तियों को उस से लाभ उठाने दिया । חב חל בחב For Private And Personal Use Only वर्तमान युग हमारे साहित्य के मुहार एवं विनेजना के लिये उपयुक्त है। मांप्रदायिक भावना कम होती जाकर प्रेम एवं उपयोगी पठनपाठन बढ़ता जा रहा है, अतः हमने अपने बाजार में जोहरीयों के सामने उपस्थित करता शैली को आधुनिक उपयोगी एवं पूर्ण शैली से से वे सर्वजनसुलभ एवं उपकारक हो सकें । देने से ही हमारा साहित्य घर में प्रचारित हो सकता है। हमें अपने प्रान संस्कृत, अपभ्रंश एवं प्राचीन लोकभाषा के ग्रन्थों को वर्तमान हिन्दी, गुजराती, बंगला आदि भाषाओं में अनुवादित करना होगा। प्राचीन कथाओं को आधुनिक कहानियों की शैली से लिखना होगा। प्राचीन काव्यों एवं अन्य ग्रन्थों को वैज्ञाि रत्नों का मूल्याङ्कन के लि नितान्त आवश्यक हैं। प्राणी कहे प्रकाशित करना चाहिये जि प्राचीन साहित्य को वर्तमान + (2) +---
SR No.533769
Book TitleJain Dharm Prakash 1948 Pustak 064 Ank 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1948
Total Pages32
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy