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________________ |100***ssor [GUSSOOSE GODS श्री - जैन-धर्म-प्रकाश 300 ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ ॥ ६॥ अज्ञानका विध्वंस करने, श्री जैनधर्म प्रकाश है । मिथ्यात्वका संहार करने, श्री जैनधर्म प्रकाश है रत्न समकित प्राप्त करने, श्री जैनधर्म प्रकाश है । आत्मका आवर्ण हरने, श्री जैनधर्म प्रकाश है बासठ वर्षका पूर्ण अनुभवी, श्री जैनधर्म प्रकाश है । 'जैन जगका वह यशस्वी, श्री जैनधर्म प्रकाश है । खंडनमंडन से पृथक् दी, श्री जैनधर्म प्रकाश है । सम्यक्त्व नीतिवाला ही, श्री जैनधर्म प्रकाश है आत्मशक्तिका विकासक, श्री जैनधर्म प्रकाश है । आत्मज्योतिका प्रकाशक, श्री जैनधर्म प्रकाश है चारित्रका उत्तम रचयिता, श्री जैनधर्म प्रकाश है। आत्मश्रद्धाका संस्थापक, श्री जैनधर्म प्रकाश है 'अनंत जीवोंका अनुभवी, श्री जैनधर्म प्रकाश है । सूर्य से ज्यादा तेजस्वी, श्री जैनधर्म प्रकाश है शान्ति स्थापित जगमें कर्त्ता, श्री जैनधर्म प्रकाश है। अमंगलमें भी मंगल कर्त्ता, श्री जैनधर्म प्रकाश है ॥ ८ ॥ नूतन वर्ष में हर्षदाता, श्री जैनधर्म प्रकाश है । सद्भावनाका निर्मल झरना, श्री जैनधर्म प्रकाश है ॥ ९ ॥ श्री जैनधर्म प्रकाशमें, सद् आगमों का भास है । श्री जैनधर्म प्रकाश, सुसाहित्यका ही प्रकाश है ॥ १० ॥ भी जैनधर्म प्रकाशमें, रहा आत्मका ही विकास है । श्री जैनधर्म प्रकाश में, परमात्मका ही प्रकाश है श्री जैनधर्म प्रकाशसे, होता प्रगट हर्षोल्लास है । श्री जैनधर्म प्रकाशसे, निरुत्साहताका नाश है ॥ ७ ॥ ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ sssssssss.......... 5500005992 ॥ ४ ॥ ॥ ५॥ १ श्री ज्ञानलक्ष्मी, २ जैन-ज्ञान- क्रियायुक्त, ३ धर्म-आत्मस्वभाव ४ प्रकाश - आत्म का पूर्ण विकास. श्री जैन-धर्म-प्र -प्रकाश ॥ Teenet
SR No.533739
Book TitleJain Dharm Prakash 1947 Pustak 063 Ank 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1947
Total Pages32
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size3 MB
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