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। कराल काल की क्रूर दृष्टि
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कराल काल तेरी गति न जाने कोई। पल में क्या ? कल में क्या? क्या करे दोई ॥ समय असमय का भान न तुझ को होई।
कराल काल तेरी गति न जाने कोई ॥१॥ वृद्ध तरुण नहीं बाल जनों तु देखे । खीलती कली विकसता कुसुम नहीं तु पेखे ॥ ..ठुर कराल काल ? क्याये ही नीति चलाई । न शलं. काल तेरी गति न जाने कोई ॥२॥
भले बलवान हो गुणवान हो सम्राट हो कैसे? इन्द्र हो वा महेन्द्र हो या तीर्थकर जैसे ।। पड़ता है तु सब के पीछे हाथ को धोई । · कराल काल तेरी गति न जाने कोई ॥३॥ ऐ कराल काल ! विश्वासघात तु करता । चलते फिरते प्राणी को भी पल में हरता ।। बिना सूचना उन प्राणी का जीवन धन हरे लेई । कराल काल तेरी गति न जाने कोई॥४॥
तेरी गति के आगे सब प्रयत्न निष्फल हो जाते। . हजार उपाय होते भी नहीं ऐक काम में आते ॥' बड़े बड़े सर्जन डॉक्टर वैद्य निराश हो जाई।
कराल काल तेरी गति न जाने कोई ॥५॥ सब प्राणी इस तेरे कार्य से हैं घबराते ।। दिन हीन अशरण बन बन के भय पाते ॥ फिर भी उनकी पुकार नहीं सुनता कोई । कराल काल तेरी गति न जाने कोई ॥६॥
सता सती व संत ऋषि मुनि त्यागी ध्यानी। हो जगतपूज्य वयोगनिष्ठ हो कैसा ज्ञानी ॥ क्रूर दृष्टि है सब पर तेरीन इस में संशय होई। . .. कराल काल तेरी गति न जाने कोई ॥ ७ ॥
.. राजमल भंडारी-आगर ( मालवा )
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