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શ્રી ટનલમાં પ્રકા
विद्वान मुनिमहाराज प्रति प्रश्नो
१ शुभ परिणामका, शुभ जोगका, शुभ अव्यवसायका तथा शुभ लेश्याका लक्षण क्या क्या है ?
२ शुभ परिणामका, शुभ अव्यवसायका, शुभ योगका, और शुभ लेश्याका मूल कारण कौनसा कर्मका कौनसा भाव है ?
३ मिथ्यात्वी जीव मिथ्यात्वका उदयसे कुदेव हरीहरादिकने, कुगुरुने, कुछमैने बंदे-पूजे सेवन करे तो उनकों पुन्यबंध होवे के नहीं ? पुन्यबंधके साथ साथ मिथ्यात्वको भी बंद हो तो हो, जीप सुदेवने नमस्कारशुं पुन्यबंध और समतिकी प्राप्ति होती है इसीतरां होगा.
४ १ श्रद्धा, २ मंतव्य, ३ मान्यता, ४ विश्वास, ५ आस्ता ६ रुचि, ७ ख्याल, ८ समझ, ९ मानणो, १० निश्रय, ११ यही है, १२ एसेही है, १३ अन्य नहि है, १४ अन्य प्रकार नहि है, १५ मानीनता, - यह पनरह शब्द एक अर्थवाला है की भिन्न भिन्न अर्थवाळा है ? जो एक अर्थवाळा पर्यायवाचक ही ज होवे जदि तो श्रद्धा शब्दको हीज अर्थ लीखो और जो शब्द भिन्न भिन्न अर्थवाळा होवे तो उण उण शब्दोका वह वह अर्थ कृपाकर लीखो.
अनुकंपा का लक्षण अर्थात् स्वरुप कांई है ? और किसी कर्मरा कीसा भावसुं अनुकंपा गुण जीवमें उत्पन्न होता है ?
६ अनुकंपा गुण आत्मारो स्वाभाविक असली गुण है की विषय कषाय रुप ती लोभमोहनीकी मंदता और धर्म अनुराग रूप, लोभमोहनीका उदय और दानांतरायरा क्षयोपसमसें आत्मामें अनुकंपा गुण उत्पन्न होवे है ?
एक जैन.
જે વિદ્વાન આ પ્રશ્નનાના ઉત્તર લખી મેાકલશે તે આ માસિકમાં પ્રકટ કરવામાં આવશે.
तंत्री.
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