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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આમી કેફિસના પ્રમુખનું ભારણ. मुलतानकी आठवीं जैन श्वेताम्बर कॉन्फरन्सके सभापतिका व्याख्यान. मङ्गलं भगवान् वीरो, मङ्गलं गौतमप्रन्नुः। मङ्गलं स्थूलिभद्राद्या, जैनधर्मोऽस्तु मङ्गलम् ॥ पृज्य मुनिरानो : सहृदय भाइयो : और प्यारी बहिनों ! ___ आजका दिन अपनी जैन जानिक निये वडा ही मङ्गलकारी है. क्योंकि धर्मोन्नतिके लिये मकडो नहीं नहीं हजागे मीलोस आनेका कष्ट उठाकर आप मन्जनाने इस विशाल पण्डालको मुशोभित किया है. जैनका जो उन्नतिरूपी बाग शनाब्दियोंसे क्रुमला रहा है उसे दृढ अध्यवसायमपी जलसे सींचकर उत्कृष्ट फल पाने की आशामें यह समुदायम.प माली निमनसा दिखाई दे रहा है-निगशाकं प्रवाहमें पड़े हुये जैन समाजके अन्तःकरणपर आशारूपी गङ्गाकी लहरें उपड़ रही हैं इसीसे कहा जा सकता है कि हमारे अभ्युदयके दिन अव निकट आ रहे है : सजनो : तीन वर्षस कॉन्फरन्सक अधिवेशन नहीं हुये, लोगोंने (जिनमें ग्क्तका सञ्चार नहीं है ) समझा था कि कॉन्फरन्सका होना मुश्किल है पर हमारे वीर मुलताननिवासियाने उस महाशक्तिको फिरसे जगाया जिसके विजयकी कामनासे आप सजन यहां उपस्थित हुए हैं : महाशयो: अपने समाजमें अनेक योग्य विद्वान् गृहस्थोंक होते हुए भी आप लोगांने मुझ जैसे साधारण व्यक्तिको आठवीं कॉन्फरन्सका सभापति चुना है. यद्यपि में अच्छीतरह समजता हूं कि इस पदके ग्रहण करनेकी मुझम योग्यता नहीं है तथापि श्री सङ्घकी आज्ञाको सिरपर - धारण करके श्री मी अनुग्रहदप शन्तिम शक्तिमान् होना हुआ यथाशक्ति धर्म और जातिकी मना बजानके लिये तैयार हूं और इस मम्मानप्रदानके कारण मैं आप महा. मायाका अन्यन्न कनज ई. For Private And Personal Use Only
SR No.533334
Book TitleJain Dharm Prakash 1913 Pustak 029 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1913
Total Pages38
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size3 MB
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