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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org धनपाण 33 तनी सूतकी कितनी इत्यादि. इसमें इस बातकाभी निर्णय हो जावेगा कि मुंह दिन रात बंधा रहे या खुलाही रहे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ दिशा पिशाब होकर शुचि करनी चाहिये या नहीं. यदि करनी चाहिये तो इंदिये साधु रविको बिलकुल पानी नहीं रखते हैं जब दिशा पिशाव होते हैं क्या करते हैं. ३ जठे बर्तनों का मैला पानी साधुको लेना योग्य है या नहीं ? इंडिये मैला पानी लेते और पति हैं. आम लोग जानते हैं. बलकि श्री गुरु ग्रंथ साहिबभी फरमाते हैं कि-शिर खुबी पीए मलवाणी जड़ा मंग मंग खांदी | फोल फदिहत मुख लैन भडासी पाणी देख संगांही ॥ इत्यादि - सो यह काम करना किस जैन शास्त्रम फरमाया है. ४ शास्त्र कितने मानने और उसमें क्या प्रमाण हैं. नियुक्ति भाग्य चूर्णि टीका वगैरह प्राचीन अर्थ मानने या नहीं. व्याकरणादिका पढना योग्य है या नहीं. यद्यपि ढुंढिये इन बातों को नहीं मानते हैं परंतु जैनशास्त्र क्या फरमाता है सो देखना योग्य है. ५ सुतक पातक मानना चाहिये या नहीं; साधुको उसके घरका आहार लेना योग्य है या नहीं. ढूंढिय इन बातों का परहज नहीं करते हैं आम मशहूर बात है. ६ जैनपतके शाखानुसार गृहस्थीको स्नान करके शुचि होकर इष्ट देवकी मूर्तिका पूजन करना योग्य है या नहीं इंढिये इस बातको याने पूजा बहुत बुरी समजते हैं. दस्ताक्षर - जैनी साधु For Private And Personal Use Only
SR No.533229
Book TitleJain Dharm Prakash 1904 Pustak 020 Ank 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Dharm Prasarak Sabha
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1904
Total Pages29
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Prakash, & India
File Size2 MB
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