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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * हिन्दी विभाग के धारावाहिक धार्मिक कथा जिनदत्त भाग-३ लेखक : राजयश विजय इस से पूर्व आप पढ़ चुके हैं कि जिनदत्त समुद्र में गिरने के बाद बच गया और उसका विवाह विजाहरी से हो गया । विवाह के अवसर पर उसे १६ विधाएं और मन इच्छित विमान बनाने की शक्ति मिली । विद्या के बल पर ही यह बामन बना । अब आगे पढिये । विजाहरी ने विमलमती से सहा, “ यह राजा था। उस नगर में एक सेट रहता था। जिनदन ही है तथा यह विद्यावल से ऐसा उस का नाम हापाक था। उस के पास कोंडो हुआ है ।" तब श्रीमती ने कहा, "हे सखि ! रुपये थे परन्तु वह बहुत अधिक कृपण था । प्रायः यह मब सत्य ही लगता है । " राजा उसने न कभी अच्छा खाया था, नहीं' अच्छा आदि के वचक सुनकर विमलमताने क्रोध पीता था । धन होने पर भी वह महादरिद्र पूर्वक कहा. “हे मुग्धे । अब मुझ कोई धोखा था । धन के लिये वह स्थान स्थान पर जाता नहीं दे सकता। मुझे एसा विश्वास है कि था । उस की दो पत्नियां थी ! उन को कोई इस के पास विद्याए सिद्ध हैं अथवा देवता सांसारिक सुख प्राप्त नहीं था। खान, पान, आदि का इसे वर प्राप्त है अथवा यह कोई वस्त्र, विस्तार आदि सब गरीबों जैसे थे । धुर्त है ।" फिर विमलमती वामन को कहने एकबार एक धूर्त उन के मकान के पास आया । लगी, मैं तुम्हारे कहने से ठगी नहीं जाउगी। उसने मकान के अन्दर झांक कर देखा तो हापाक सेठ की पत्नियो' की तरह मैं अपनी दोनों स्त्रियोंको फटे पुराने वस्त्रो में देखा । स्थिति नहीं बनाना चाहती ।” पास में बैठी बह धूर्त किसी यक्ष के मन्दिर में गया । हुई श्रीमती कहने लगी. "हे बहना यह हापाक पहले उसने तीन उपवास किये और फिर सेठ कौन है ?” फिर विमलमती ने हापाक यक्ष को प्रत्यक्ष कर कहने लगा. "मुझे हापाक सेठकी कथा कहनी प्रारम्भ की। सेठ का रूप दो । ” उस ने उनर दिया, यह प्रतिष्ठानपुर नगर में जितशत्रु नाम का अनुचित है. मैं ऐसा रूप नहीं दृगा । फिर For Private And Personal Use Only
SR No.532028
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 092 Ank 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1994
Total Pages21
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
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