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महान ज्योतिर्घर श्रीमद् विजयानद सूरी महाराज का दिव्य जीवन
गुज. ले. श्री सुशील हिन्दी अनु. रंजन परमार
अदभत प्रवचन प्रणाली
लिखना और बालना किसी भी व्यक्ति अथवा इन्सान की एक लाक्षणिक कला होती है । मन में आया सेो बकवास किया, उसे जिस तरह वाणी नहीं कहते, ठीक उसी तरह जी में आया सो लिख दिया उसे लेखन नहीं कहते । वाणी का माधुर्य, वाणी का आरोह-अवरोह, वाणी के अनुरुप भाव-प्रदर्शन आदि व्याख्यानकला के अनन्य अंग है अति ओजपूर्ण और जोशीला भाषण करने वाले व्याख्याता कभी-कभी अपने वक्तव्य को निरा कृत्रिम और बेहुदा बना देता है। ठीक उसी भाँती असामायिक मदता श्रोताओं में निराशा उत्पन्न कर देती है। वस्तुतः देखा जाए तो ! व्याख्यान एक प्रकार का संगीत है । भले ही उसमें छद-बद्धता न हो; किसी प्रकार की झंकार और टंकार न है। - किंतु कलाकार अपनी अनोखी सूझ-बूझ से निर्मित सुरावली से अनगढ श्रोताओं को मत्र-मुग्ध बना कर इच्छित प्रभाब उत्पन्न करता है।
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