SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महान ज्योतिर्घर श्रीमद् विजयानद सूरी महाराज का दिव्य जीवन गुज. ले. श्री सुशील हिन्दी अनु. रंजन परमार अदभत प्रवचन प्रणाली लिखना और बालना किसी भी व्यक्ति अथवा इन्सान की एक लाक्षणिक कला होती है । मन में आया सेो बकवास किया, उसे जिस तरह वाणी नहीं कहते, ठीक उसी तरह जी में आया सो लिख दिया उसे लेखन नहीं कहते । वाणी का माधुर्य, वाणी का आरोह-अवरोह, वाणी के अनुरुप भाव-प्रदर्शन आदि व्याख्यानकला के अनन्य अंग है अति ओजपूर्ण और जोशीला भाषण करने वाले व्याख्याता कभी-कभी अपने वक्तव्य को निरा कृत्रिम और बेहुदा बना देता है। ठीक उसी भाँती असामायिक मदता श्रोताओं में निराशा उत्पन्न कर देती है। वस्तुतः देखा जाए तो ! व्याख्यान एक प्रकार का संगीत है । भले ही उसमें छद-बद्धता न हो; किसी प्रकार की झंकार और टंकार न है। - किंतु कलाकार अपनी अनोखी सूझ-बूझ से निर्मित सुरावली से अनगढ श्रोताओं को मत्र-मुग्ध बना कर इच्छित प्रभाब उत्पन्न करता है। For Private And Personal Use Only
SR No.532026
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 092 Ank 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1994
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy