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આત્માનંદ પ્રકાશ
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अरणीक मुनिवर -
अरणिक मुनि बाल्यावस्था में दीक्षा लेते क्यों कष्ट देते हो ? योंही जलाजलाकर राख है । माता भी दीक्षा ले लेती है। अरणिक क्कों कर रहे हो ? तुम्हे चाहिये, मेरे साथ मुनि बडे सुकुमार है । दोपहर का वक्त है। रहकर भोगविलास में मग्न रहो आनंद करो। बडी कडी धूप पड रही हैं । सिर खुला है, तप रहा है, पैर जल रहे है । अरणिक मुनि
अरणिक मूनि वही रह जाते है । चारित्र ऐसे वक्त गोचरी [भिक्षा] लेने के लिये अपने
को भ्रष्ट करदेते है । अरणिक जव नहीं लोटे स्था से बाहर निकले । शहर में आते हैं ।
तो उनकी साध्वी माता को चिंता होती है । परन्तु चलते चलते पैर जलने लगे, वहीं एक
__ मेरा लडका कहां चला गया ? क्यों नहीं
मर मकान की छाया देखकर उसके सीने पर अभीतक आया । माता पागलती होजाती हैं । देर के लिये खडे हो गये । झरोखे में एक मरा लड
मेरा लडका मेरी कुक्षी से जन्मा हुवा, छोटी स्त्री बैठी थी, उसने युवान मनि को देखा. उम्र में भावना से उसे दीक्षा दी और मैंने वह उनपर मुग्ध होजाती हैं। दासी को करती भी ली । आज कहां चला गया ? क्या हो है- 'नीचे एक साधु खडे है, आदर से उन्हे
गया १ साध्वी होते हुए भी मोह का उदय ऊपर ले आओ।
होता हैं। दासी साधु के पास आती है। कहती हैं-
___ अरणिक अरणिक करती मा फिरे,
अर 'महाराज ! पघारिये, हमारी बाईजी आपको
___ गलिए गलिए बनारो जो ।। बुलाती है । बहराना है [भीक्षा देना है। केणे दीठोरे मारो अरणीलो पूछ आप गोचरी के लिये पधारिये ।'
लोक हजारो जो ॥
अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ।। ___साधु ऊपर चले जाते है, और इसके बाद भाई ! तुमने मेरा लडका देखा १ सुन्दर स्त्री नाना प्रकार के हावभाव से, बोलचाल काया है । साधुवेष में है । भिक्षा के लिये से उन्हें अपनेपर मुग्ध करती हैं, कहती है: निकला है, परन्तु अभीतक नहीं आया । 'इस साघुपने में क्या रखा है ? इतना सुकु- तुमने देखा है उसको ?' हजारों मनुष्यों को मार शरीर ! यह यौवन अवस्था ! यह तो पूछती फिरती । पागल सी होगयी है ।। अवस्था तुम्हारे लिये नानाप्रकार के काम, संयोग से झरोखे में स्त्री के साथ बैंठा भोग, विलास भोगने की है । इस शरीर को हआ अरणिक अपनी माता को रोते देख
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