SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir માનંદ પ્રકાશ कुछ दिनों के उपरान्त दशपुरनगर में पहच उठा । वह कहने लगा, 'माता जी ! आप गया । उस नगर में एक उद्यान था वह उस दुःख का त्याग कर दीजिए । आज मैं रात्रि की वाटिका में एक वृक्ष के नीचे बैठ गया । के समय राजाकी कन्या की रक्षा करुंगा।' जिनदान के भाग्य से सूखी वाटिका हरी हो पहेले तो मालिन इस बात पर सहमत न हुई गई । माली ने यह सब देख लिया और परन्तु कुमार के आग्रह करने पर वह मान उसने तुरन्त बाग के स्वामी सेठ औदत्त गई । को इसकी सूचना दी । सेठ शीघ्र वाटिका फिर राजकुमार राज महल में गया । वहां में आया और जिनदत्त को अपने घर ले गया। पर राजाने उसे देख लिया । देखते हो राजा सेठ कुमार को अपना धर्मपुत्र मानने लगा। विचार करने लगा, मुझे धिक्कार है जो कि सेठ के ८४ जहाज थे । __ अपनी पुत्री के मोह में पड कर नगरजनों एकबार सेठ औदत्त और कुमार जहाज की प्रतिदिन हत्या करवा रहा हूं। इस द्वारा सिहल द्वीप को गये । वहां पर धन सम्बन्ध में शास्त्रकारों का कथन है । वाहन राजा राज्य करता था। उस की अक्खाण डसणी, श्रीमती नाम की एक कन्या थी । उस नव- कम्माणमोहणी तह वयाण बझवयं । यौवना का रूप लक्ष्मी जैसा, विद्या सरस्वती गुतीणय मणगुत्ती, जैसी, शील सीता जैसा था परन्तु कर्म दोष चउरो दक्खेण जिप्पंति ।। के कारण वह व्याधिग्रस्त थी । रात के समय अर्थात इन्द्रियों में रसनेन्द्रिय (जीभ), कर्मो एक व्यक्ति प्रहरी के रुप में उसके पास में मोहनीय कम, व्रतों में ब्रह्मचर्य, गुप्तियों रहता था तथा प्रातः होने पर वह मृत्यु को में मन गुप्ति ये चारों कठिनता से जीती प्राप्त हो जाता था । यदि कोई व्यक्ति प्रहरी जाती है । के रूप में न आए तो श्रीमती, नगरवासी, वहां से बह श्रीमतो के कमरे में गया । राज्य और देश में उपद्रव होता था । वह जिनदत्त के रूप, सौंन्दर्य, सौभाग्य को एक दिन जिनदत्त भगवान की पूजा के देखकर अति विस्मित हुई । श्रीमती ने लिये पुष्प लाने के लिये किसी माली के धर कुमार से कहा 'हे कुमार ! आज आप मेरे में गया । वहां एक वृद्धा रो रही थी । उस पास न ठहरिये । जो भी उपद्रव होना हैं वृद्धा ने कहा, 'आज राजा की लडकी की उसे होने दीजिए ।' फिर उसे निद्रा आ गई। रक्षा के निमित्त मेरे पुत्र की बारी है। वह जिनदत्त ने किसी चण्डाल से एक व्यक्ति के मेरा इक लौता बेटा है । रात के समय उस शब को लाकर अपनी शय्या पर रख दिया की मृत्यु हो जाएगी ।' वृद्धा मालिन का और स्वयं दीपक की छाया के पीछे जाकर दुःख सुनकर कुमार का महृदय द्रवित हो जागृत अवस्था में खडा हो गया । For Private And Personal Use Only
SR No.532023
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 092 Ank 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramodkant K Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1994
Total Pages25
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy