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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० उववाई सूत्र वृति ३१२५ * २८ षट् स्थान भाप्य गा. १७३ ११ प्रशापना तृतीय पद संग्रहणे १३३ २९ वीर स्तोत्र गा.२२ १२ पञ्चाशक सूत्र वृति (सं. १९२४ ३० षोडशक टीका गा- ३० __द्योतका) ७४८० * ३१ महादण्डक १३ सप्ततिका भाष्य १९२ ३२ तिथि पयन्ना १४ बृहत् वन्दनक भाष्य ३३ ३३ महावीर चरित्र गा. १०८ १५ नवपद प्रकरण भाग्य १५१ ३४ उपधानविधि पंचाशक प्रकरण गा. ५० (नं. ३३-३४ मे हेमंत शांतिनाथमे ताड- पत्री प्रति है) आचार्य अभयदेवसूरि के महत्व को व्यक्त करते हुए द्रोणाचार्य कहते है :आचार्याः प्रतिसन सन्ति महिमा येषामपि प्राकृते, मतिं नाऽध्यवसीयते कुचरितैस्तेषां पवित्र जगत् । पकेनाऽपि गुणेन किन्तु जगति प्रज्ञाघनाः साम्प्रत, यो धत्तेऽभयदेवसूरिसमतां सेोऽस्माकमावेद्यताम् ॥ [युग प्रधानाचार्य गुर्वावली पृ. ७ ] पूज्य अभयदेवसूरिजी के सम्बन्ध में पं. बेचरदासजीने एक भागु पुस्तिका प्रकाशीत हो चुकी हैं । उस में कुछ बातें जैसी घनिष्ट लगी उसके सम्बन्ध में एक लेख जैन जगत में प्रकाशित हो चुका है। श्री अभयदेवसूरिजी की अप्रकाशित रचनाओं को शीघ्र ही प्रकाश में लाना जा रहा हैं और अज्ञात रचनाओं की खोज की जानी चाहिये। १७वीं शताब्दी के धर्मसागरने अभयदेवसूरि के गच्छ-परंपरा के समय में विवाद उठाया था। तब सं० १६१७ में पाटण के सभी गच्छवालेांने मिल कर वे खरतर गच्छ में ही हुवे हैं इसका मतपत्र वृत्तिमें दिया था। उस मतपत्र की नकल हमने अपने युगप्रधानजितनं दसूरि ग्रन्थ में प्रकाशित कर दी हैं। समयसुदरोपाध्य के काकाभाई अभय एवं उपाध्याय जयसामा रचित प्रश्नोत्तर ग्रन्थ भी इसका अच्छा विवरण हैं। अभयदेवसरि खरतरगच्छ के थे यह तपागच्छीय ग्रन्था में भी उल्लेख हैं। अतः साक्षी ग्रन्थों में पालीवालगच्छीय अभयदेवसूरिरचित 'प्रभावकचरित्र (गद्य) का उल्लेख पत्रकमें है, पर वह अभी पाया नहीं हैं। इस महत्वपूर्ण ग्रन्थ की खोज भी अत्यावश्यक है। 卐 આત્માનંદ પ્રકાશ For Private And Personal Use Only
SR No.531789
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 069 Ank 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1971
Total Pages61
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size6 MB
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