SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૧૬૪ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ दुहा पास एह निज दासनी, अवधारो अरदास | नय देखाडी दरिस, पूरो पूरण आस ॥ ४३ ॥ चकव चाहें चित्तसुं, दिनकर दरसण देव । चतुर चकोर चंद जिम, हुं चाहुं नितमेव ॥ ४४ ॥ निरसभर सूता निंद में, दीठं दरसीण आज । परतिक देखाडी दरिस, सफल करो मुज काज ॥ ४५ ॥ तुम्ह दरसण सुखसंपदा तुम दर ( स )ण नवनिद्ध । तुम्ह दरसणथी पांमियें, सफल मनोरथ सिद्ध ॥ ४६ ॥ छंद जाति - अडयल पाघडी अंतरीकप्रभु अंतरजामी, दीजे दरसण शिवगतिगामी । 5 गुणता कहियें तुम स्वांमि कहतां सरसति पार न पांमि ॥ ४७ ॥ कीधी छंद मंद मति सारु, हितकर चित्तमें धरजो वारु । बालक जदवा तदवा बोले, माताने मन अमृत तोलें ॥ ४८ ॥ कीयों कवित चितने उलासें, सांभलतां सवि आपद नासें । संपद सघली आवें पार्से, ' भावविजय' भगतें इम भासें ॥ ४९ ॥ For Private And Personal Use Only छंद जाति-देशी कीयों छंद आणंद वृंद मनमांहे आंणी, सांभलतां सुखकंद चंद जिम शीतल वांणी, श्री विजयदेव गुरुराज आज तस गणधर गाजें, श्रीविजयप्रभनाम कांम समरूप विराजें । गणधर दोय प्रणमी करी, थुण्यो पास असरण सरण, ' भावविजयवाचक' भर्णे, जय देव जयजय करण ॥ ५० ॥ इति श्रीअंतरीक पार्श्वजिन छंद समाप्तोऽयमिदम् श्रेय ॥
SR No.531614
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 052 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1954
Total Pages20
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy