________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
શ્રી આત્માન પ્રકાશ
महिमा वधारे विघन वारे, करे शेवा अति घणी,
तुम नाम लीनों रहे भीनों अवर देवह अवगणी ॥ १० ॥ नर नाथ कोडि हाथ जोडी, मान मोडी इंम कहे,
प्रभु नाम चरणे जिके सरणें, रहें तें परपद लहें । वलि जेह उतकट विकट संकट, निपट नाव ते वली,
भय आठ मोटा निपट खोटा, दूरथी जाये टली ॥ ११ ॥
चाल जे रोग भयंकर दुष्ट भगंदर, दुष्ट खय न (?) खस खास, हरिखा अंतर्गत (ड)वलि मलज्वर, विषमज्वर जाइ नास । दिसें अति माठा वलि व्रत चाठा, नाठा जाई जेह, तुम दरसण सामी शिवगतिगामी, चामीकर सम देह ॥ १२ ॥ जलनिधि जलगजे(जे) प्रवहण भजे बजे वाय कुवाय, थरहर तिहां धुजे दरिं(हरि)हर पुजे, कीजे बहुल उपाय । मनमांहे कंपें हई हइ जंपें, किणही किंपि न थाय, इण अवसर भावे प्रभुनें ध्यावें, पावें ते सुख थाय ॥ १३ ॥ झंडफे तरुडाला पावक झाला, काला धुंण कलोल, उछलता देखी जाइं उवेखी, पंखी पडय दंदोल । पंथी जन न्हासे भरीया सासें, त्रासें धूजे तेह, तेणें ठामें प्रभुने नामें, कुशले पांमे धेह ॥ १४ ॥ फणने आटोपें मणिधर को, लोपे जे वली लीह, धसमसतो आवे देखीं धाव, लबकावें दोय जीह । बीहें जण जातां देखि रातां, लोयण तस विकराल, कीधे गुणग्याने प्रभुनें ध्याने, अहि थाई विसराल ॥ १५ ॥ पापे पग भरतां हिंडे फिरतां, करता अति उन्माद, घोटक जिम छूटें अति आकुंटे, लूटें निपट निखाट(द)। वनमा जे पडियां चोरे नडींयां, अडवडियां आधार, इण अवसर राखे कुण प्रभु पाखे, भाखे वचन उदार ॥ १६ ॥
For Private And Personal Use Only