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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्री वल्लभ सद्गुरुभ्यो नमः ॥ श्री वल्लभनिर्वाण कुंडलीगायन शु.श. म RECIPASHRAM रचयिता-श्रीयुत् हस्तीमल कोठारी सादडी ( मारवाड़) (तर्ज-छोड़ गये महावीर मुझे आज अकेला छोड गये।) मेरे श्रीसंघ क सिरताज, अब कहाँ सिधारे राज । मरूधर की आँखों के तारे, पंजाबियों के प्राण । भारत का था कल्पतरुवर, गुर्जर प्रगट्यो भाण ॥ मेरे० ॥ १॥ वल्लभ तेरा नाम अनुपम, जग वल्लभ कहलाया । लाखों मनुज का नायक था, यहाँ लाखों का दिल बहलाया।मरे० ॥२॥ वृद्ध आयु तक देव तेने, जिन धर्म की सेवा कीनी । श्रावक संघ के अभ्युदयहित, संस्थायें स्थापन कीनी ॥ मेरे ॥३॥ कर्क लगन में चंद्र गुरु संग, गुरुवर स्वर्ग सिधारे ।। कन्या का रवि त्रीजे भवन में, दिव्य पराक्रम धारे ॥ मेरे ॥४॥ शुक्र शनैश्चर चौथे भवन में, बुध भी साथ कहावे । मंगल राहु छठे भवन में, केतु बार में ठावे ॥ मेरे ॥५॥ धर्म-भवन का स्वामी सुरगुरु, उच्च लगन में बैठा । चंद्र शुक निज घर के स्वामी, शनी उच्च बन बैठा ॥ मेरे० ॥६॥ मंगल राहु रवि श्रीजे छटे, ये सय शुभ फलकारी । उच्च गति को प्राप्त करावे, प्रह बल के अनुसारी | मेरे० ॥७॥ छोड़ हमें गुरु स्वर्ग के सुख में, तेरा जी ललचाया । आसो वदि दशमी की रात्रि, गुरुवर स्वर्ग सिधाया ॥ मेरे० ॥८ मंगलवारे, पुष्य ऋषि के, प्रथम चरण में जावे । मुंबई शहर की लाखों जनता, गुरुवर शोक मनावे ॥ मेरे० ॥९॥ भाग्य हुआ कुछ अल्य हमारा, वल्लभ सूर्य गमाया। हस्ती श्री गुरुराज चरण में, सादर सीस झुकाया ॥ मेरे०॥१०॥ प्रकाशकः-चंदनमल लालचंद-पारसी गली. (७७) For Private And Personal Use Only
SR No.531609
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 052 Ank 04 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Atmanand Sabha Bhavnagar
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1954
Total Pages37
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size5 MB
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