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विश्ववन्ध जनमानसकमलदिवाकर, ज्ञानविज्ञानवाचस्पति, आतंत्राणपरायण
नवयुगप्रवर्तक भारतगौरव आचार्यदेव श्री श्री १००८ श्रीमद् विजयवल्लभसूरीश्वरजी महाराज के देवलोक प्रस्थान करने पर शोकसन्तप्त हृदय से समर्पित
श्रद्धाञ्जलि। भारत माता पूछ रही मेरा वल्लभ गया कहाँ ? जो मेरी गोदी में आकर प्रथम हास से किया विभो ? जिसने शैशव प्रथम चरण में पाई थी ज्योती अणमोल, प्रस्त व्यथित माता के दुःख से उद्वेलित था सदा यहाँ, व्यथित बना हा मुझ को प्यारा मेरा वल्लभ गया कहाँ ॥ भारत० ॥१॥ तुम बोलो नगराज ! तपस्वी अचल तुम्हारे जैसा था, तुम तो हो पाषाण दया का रूप मनोहर वल्लभ था, सत्य अहिंसा मूर्ति रूप वह दुःखियों का अवलम्ब महा, मेरा प्यारा प्रेम दुलारा बोलो वल्लभ गया कहाँ ॥ भारत० ॥२॥ एक वार गङ्गे तुम बोलो तव समान जो निर्मल था, कितने को उद्धार किया वह पावन रूप महाबल था, करती थी वचनामृत धारा जिस के मुख से प्रबल वहाँ, सत्यं और शिवं सुन्दरं ही प्रगट हुआ था गया कहाँ ॥ भारत० ॥ ३ ॥ हे सूर्य देव हे चन्द्र देव करुणा पयोधि वल्लभ सदैव, बतला दो वह गया कहाँ हे इन्द्र देव हे वरुण देव, शिक्षा धर्म विकास हेतु जो अपर भगीरथ बना रहा, लौटा दो कह मां रोती है कहती वल्लभ गया कहाँ ॥ भारत० ॥ ४ ॥ हे काल महाकाल क्यों वल्लभ मुझ से छीन लिया, जिसे देख प्रमुदित रहती भै हा तुम उसको उठा लिया, धर्मद्रोहीयों से अव बोलो कौन बचाये मुझे यहाँ, रे निष्ठुर निर्दयी विधाता वल्लभ को ले गया कहाँ ॥ भारत० ॥ ५॥ बलभ ! तेरे दुसह विरह में रोता वह पन्जाब प्रान्त, देखो खोज रहा तुम कोही व्यथित बना बंबई अशान्त, सौराष्ट्र तथा गुजरात देश नयनों से आंसु बहा रहा, मरुधर विलख रहा है कहता वल्लभ मेरा गया कहाँ ।। भारत० ॥ ६ ॥ जाओ वल्लभ जन्मभूमि हा तुम्हें नहीं विसरायेगी, जैन समाज ऋणी तेरा है तारी याद कलायेगी, श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हैं जन जन आंसु धार वहा, विलख विलख कर यह कहते हैं गुरुवर वल्लभ गये कहाँ ।। भारत०॥७॥ जैन भवन-कलकत्ता
समर्पक दिनाङ्क २६-९-१९५४
व्यथित दिनेश मिश्र पंडित (५)
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