________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
એક વૃદ્ધમુનિના
વાસ,
ર૩
हुआ था । इस के
का जन्म संवत् १९९३ में मारवाड़ के पाली शहर में खीमचंदजी नामक ओसवाल महाजन के यहां मगशर शुदि ५ को हुआ था । आप का नाम हरखचंदजी था । आपने संवत् १९३५ वैशाख शुदि १३ के दिन लुधियाना शहर में आचार्यदेव श्रीमद् आत्मारामजी महाराज के हाथ से दीक्षा ग्रहण की थी । गुजरात तथा काठियावाड के अलावा आप पंजाब में खूब घूमे थे । गुरुसेवा यह आप का परम ध्येय था । ६० वर्ष के दीक्षापर्याय में आप यथासंभव श्रीगुरुदेव से जुदे कभी नहीं विचरे । ज्ञान के आप परम उपासक थे | आप दिनभर बालकों को पढ़ाते रहते तथा शास्त्र और संग्रहित शास्त्रों की रक्षा में तत्पर रहते थे । पंजाब 1 के समस्त भंडारों का लिष्ट मानो आप के हृदय पर लिखा अतिरिक्त आप साधु मात्र की सेवा में तल्लीन रहते थे । ज्ञान का क्षयोपशम अधिक तीव्र न होने पर भी आप परम सेवाभावी थे । स्वर्गस्थ श्रीआत्मारामजी महाराज के आप भंडारी कहलाते थे । ६० वर्ष तक विशुद्ध चारित्र पाल कर पंजाब के सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर गुजरांवाला में संवत् १९९४ के श्रावण वदि ११ की मध्य रात्रि को आप का स्वर्गवास हुआ। आप अंततक समाधिस्थ रहे । आचार्य श्रीविजयविद्यामूरिजी मुनिराज श्री विचारविजयजी तथा मुनिराज श्री उपेन्द्रविजयजीने १३ साल तक आप की अविश्रांत सेवा की । श्रीस्वामीजी महाराज हमेशा श्री आत्मारामजी महाराज के साथ ही विचरे और उनके स्वर्गवास के बाद पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजयवल्लभसूरिजी महाराज के साथ ही विचरते रहे । जब आचार्यदेव गुजरात तर्फ पधार गये तब आपने पंजाब की निरंतर पालना की । आप के स्वर्गवास के समाचार जिस किसीने सुने उसको असा दुःख हुआ । पंजाब में आप के कालधर्म के समाचार पहुंचते ही पंजाब के नरनारी सैकड़ों की संख्या में आप के दर्शनार्थ उपस्थित हुए और संस्कार आदि में नितांत भक्ति दर्शाई । आप के स्वर्गस्थ हो जाने से एक वृद्ध अनुभवी और चारित्रपात्र ऐसे मुनिरत्न की खोट पडी है कि जो किसी तरह से भी पूरी नहीं हो सकती । आप के स्वर्गीय आत्मा को शांति पहुंचे और आप जैसे पुरुषरत्न समाज में युग युग में अवतार धारण करे यही अंतिम भावना है ।
For Private And Personal Use Only