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શ્રીમદ્વિજયાનંદસૂરિ મહારાજની જયંતી સમયે ગાયેલી કવિતા. ૨૧
धाम ही केवल नहीं विद्याकी गंगा वह रही, दुःख पापकी मैलोंको धोलो मुफत मुंहसे कह रही. जीस अहिंसा पर दिया गांधीने तन मन वार है, उसका यहांपर पहलेही हो रहा खूब प्रचार है. १० धन्य स्वामीजीको विद्याबाग जो लगवा गये, कइ लडके विद्या मुफत पढ दुख दूर कर सुख पागये. ११ अब भी लडके सैंकडो तालीम कौमी पा रहे, लडके न समजो बुलबुलें हैं स्वामीके गुण गा रहे. १२ वह नहीं मरा जीता सदा उपकार जगमें कर गया, उपकार करनेके विना जीता ही भी मर गया. १३ दुनियाकी न पायेदारीको यह बात है जतला रही, वह प्यारी नानकचंदकी सूरत नजर नहीं आ रही. १४ दो साल गुजरे हैं वही बैठे हमारे पास थे, यह था न था यह तिथि थी यह ज्येष्ठ होके मास थे. क्या खबर है अगले वर्ष यहां कौन कौन न होयेगा. जो धर्म न कर जायगा पछतायगा और रोयेगा. १६ हो जीसमें पत्र और पुस्तकें इक लायब्रेरी चाहिये, प्रारंभ करदो आजही करनी न देरी चाहिये. जैनके सिद्धांतका प्रचार देखेंगे जबी,
आनंद तो आगेही है आशीर्वाद देंगे तबी. १८ पुस्तकालयभी यहां आनंद भवनके पास हो, धर्मप्रेमीकी यहांपर तबी दूरे व्यास हो. गलतियांकी क्षमा चाहता हुआ यह गुरुबक्षदास, विनती यह स्वीकार होगी आपसे करता है आस. २०
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