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શ્રી આત્માનંદ પ્રકાશ,
केवल ओसवाल भाइयोंये पाए गए, खुशीकी बात है कि गुरुमहाराजकी जयंतीका मौका पाकर महाराजश्रीने संपकी तरफ खास सबका मन आकर्षित किया. सबको सचोट असर हुई, सबका दिल पिगल गया. सबने मिल दस्तखन कर दिये कि गुरूमहाराज जो कुछ आज्ञा फरमावें, हम सबको सादर मंजूर होगी.
__ गुरुमहाराजने भी दो दिन आहारपानीकी भी परवाह नकर बडे परिश्रमसे सबकी बात जुदा जुदा सुनकर जेठ मुदि नवमीकों शनीवारको पांच बजे बडा लंबा चौडा फैसला लिखकर सुना दिया. मूल मुद्दा धजाके उपर साथिया करनेका था. और इसीकी बदौलत तीस सालसे गाममें टंटा चल रहा था. अदालतीकाई वाहभी हो चुकी थी. मगर निपटारा नहीं हुआ गामका कहना कि जो बोली बोले उसका साथिया होना चाहिये, चौवटिया-कारभारीका कहना कि हमेश हसे हमही करने आए हैं करेंगे. महाराजने इस कांटेको थोडेमें ही निकाल फेंक दिया. और तीस वर्षके टेटेका मुह काला कर दिया, सब भाईयोंका मुख उज्ज्वल हो गया. सबके चहेरे परनूर वर्षेने लगा. सबके मुखसें जय जय ध्वनी निकलने लगी.
महाराजसाहेबके चुकादेका सार. बोली वालेका साथिया, पहला होवे और चौबटियेका दूसरा होवे. बोली पांच रुपैयेसे कम न होनी चहिये.
अगर बोली पांचसे कम होगी या बिलकुल न होगी. उस वक्त चौवटिया ही साथिया करेगा. इस बातको सबने सहर्ष स्वीकारली और श्री महावीर स्वामीकी जय बुलाकर, सभा विसर्जन हुई.
महाराजश्रीने आजरोज शिवगंजको तर्फ विहार किया है वहांसे फिरने हुए चौमासाके लगभग सादडीमें जा विराजेंगे. अब यहभी उमीद है कि खडी रही टीप आगेको चलेगी. जेठ सुदि दशमी रविवार.
आपका शवेरचंद. बीजापुर (मारवाड )वाला.
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