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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir આત્માનન્દ્ર પ્રકાશ, (उन्नति नः होनेका कारण) विदित हो कि गत अंक ( हमारी उन्नति क्यों नहीं होती) इस लेखमें सपिष्ट बता चुके हैं कि हमारे भाई जो, मुखसे कहे उतनाही करके दिखावें तो शीघ्र उन्नति होनेमें कोई शंका नहीं रहती पर आमिल बा अमल कहता सो करता किसीको नही देखा-और यही पूरी न्यूनता है जो उन्नति होने वाधा डालती है दुत्ये कारण उपदेशकों की खामी है (कमी है ) क्योंकि विना उ. पदेशकों के कोई कार्य पार नहीं पडता त्यागी उपदेशक साधु मुनिराज उपदेश देते हैं सही पर उनकी तादाद बहुत कम है जिसमें बहुत भाग अध्यात्मी है उनके लिये चाहे जैन जाति तिरोया डूबो उन्हें कुच्छ परवाह नहीं है उन्हें तो केवल मालाके दाने लुढ़काने से मतलव है और कुच्छ भाग विद्याअभ्यास करता है इने गिने महात्मा ऐसे हैं जिनसे वादी चक्कर खाते हैं. परन्तु इतनी कम तादाद से जैन जातिका काम नहीं चल सक्ता और ऐसे कनक कामनीके त्यागी उपदेशकोंका एक दम वढना भी कोई छोटीसी बात नहीं है. कहीये तो अब काम कैसे. चले सेकडों नगर ऐसे हैं जहाँ त्यागी उपदेशक नही जासक्ते. क्यों कि जैन वर्ग ज्यादह है वहां सही वोह खाली नहीं तो कम जनोंकी आंबादीवाले नगराम कौन खवर लेता है और बहुत नगर ऐसे हैं जहांपर उन महात्माओंकी क्रिया काठेन होनेके कारण बिहार ही नहीं हो सक्ता तो उन लोगोंकी खबर लेवे कौन-और खवर नः लेनेसेही घोर अन्धकार हुवा जाता है जैन जाति अन्यमती बनते जाते हैं उदाहरणमें जोधपुर-उदयपुर-अजमेरमें औशवाल वैष्णव ब्रह्मनमतानुयाई होगये और आगरेके निकट बराराग्राम For Private And Personal Use Only
SR No.531069
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size2 MB
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