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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir અમારી ઉત્પતિક નહિ હતી. ૧૪૧ हीसे सब कुच्छ नमज गये होंगे यदि हम में जरुरत है तो पहला नम्बर अपनी प्रतिज्ञा का पालन करता है जब तक हम इस नियम में द्रह नहीं होंगे तबतक कुच्छ भी कार्य नहीं हो सकता चाहै आप एक वर्ष क्या हजार २ वर्ष तक कोशेष कीजये एक रुल नही हजार पास कोजये । जबरूल प्रस्ताव-वंतावहीमें नहीं लाये जाते तो किस कापकहै चाहे एकहीं परताव पालको परजितने सभा मंडपमें हो उप्ती समय अपनी प्रतिज्ञाका पचरूखाण कर लो चाहै मरीत कटतक क्यों नः सहना पडे पर अडिग बने रहो तभी मन धारा कार्य पार पड सकता है वरना विना सत्यताके कुच्छ नहीं एक करिने भी कहा है कि सत्य बराबर धर्म नहीं बराबर पाप । र सत्य धर्मका मल है ज पापका बाप । बम भाइयों मनाहा लेख में यही आदेश है कि याद साहसहै ओर धर्मान्नति करना चाहते होला कमर कसकर उठो और धर्म रक्षा करो कोरी भंगडीयो कीसी गप्पे नः हांको जो मुख मे कहो कर दिखावो शास्त्रकारभी इम विश्यको पुष्ट करते हुये कहते हैं कि प्रयातु लक्षमीश्चपल स्वयावा गुणा विवेक प्रमुखाः प्रयान्तु । । प्राणश्व गच्छन्तु कृत प्रयाणाः मायातु सत्वंतु नृणां कदाचित् । इत्यादि बहुत लेश्वहैं क होतक लिखू पत्र में जगह नही हे अब आपही पर भार छोडना है कि यदि जातिय पक्षको उभारना चाह ते हो तो असत्य बोलने को वक्रगतिको छोड सत्य बोलना ग्रहण करो तो जातिय उन्नति, व्यापार उन्नति, धर्मोन्नति, देशोन्नति आदिक अनेक उन्नतियां शीघ्र आपको प्राप्त हुँगी वरना अब इस For Private And Personal Use Only
SR No.531066
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size2 MB
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