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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir હમારી ઉત્પતી ક નહીં હતી. ૧૯ प्यारे पाठको ये सब कुच्छ कहनेही मात्र है यही हमारे भाई जो भोगविलाम और व्योपारादिमें अपने वचनोंका पालन करने में कार्य कुशल होते हैं हजार विपत्ती आने पर भी अपने वचनोंका पूरा डालनेमें सरतोड परिश्रम करते है वोही महा पुर्ष इस धर्म विश्य जातिय मुधारमें गलिया बैलकी तरह एक दम जुआ डाल (गेर) अलग जो खडे होकर पामर जीवोंकी तरह गिडगडाते हैं इस काम में जरामी साहस करना उनके वास्ते आकाशमें उडनेके सद्रश्य है. इस धार्मिक कार्यो में इन मात्माओंको अपने बचनका अपनी प्रतिज्ञाका अपने अग्रेसरों का कहे सुनेका कुच्छभी ध्यान नहीं है . मस्ताने हाथोकी तरह पडे झूमते रहते हैं और जो जीमें आया सो करते हैं उन भले मानसोको ये खबर नहीं हैं कि कौनफिरन्स आदि सभाओंमें जो लाखों रूपया हमारी जातिका जो हमने बडे परिश्रमसे पैदा कियाथा स्वाहा हुवा है तो उससे हमने क्या लाभ उठाया यदि उन मात्माओंको कुच्छ उपदेश दिया जाता है तो फिर निरक्षर भट्टाचार्य खूबही वेतुकी उडाते हैं. प्यारे भाईयो जरा इन निरक्षर भट्टाचार्योकी भी ऊत पटांग दलीलोंको सुनये प्रारंभमें तो यही प्रश्न उपस्थित होता है किपहले करते आये सोही हम करेंगे-क्या बढे बडेबे वकूफये अभी अकलमंद पैदा हुवे है, जब उतर दिया जाता है कि नही भाई पहले वे वकूफ नः सही और उनके विश्यमें कहताही कौन है अब तो तुमारा ही सुधारा किया जाता है जरा ये तो कर दिखाया कि जिसका बाप ( पिता ) दो, ताले अफीम खाता हो उसकी सन्तान भी हमारे सापने खावें या जिसके बाप दादे शराबी कबाबी जुवारी लंपट चौर है तो क्या उसकी सन्तानभी ऐसाही करे, पर वैसा करते नही स्योंकि For Private And Personal Use Only
SR No.531066
Book TitleAtmanand Prakash Pustak 006 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Oghavji Shah
PublisherJain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publication Year1908
Total Pages24
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Atmanand Prakash, & India
File Size2 MB
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