________________
Celebrating Jain Society of Houston Pratishtha Mahotsav 1995
(तरंग - सारंगा तेरी याद में )
(स्थापी)
प्रभु तुम्हारे नाम को, गाऊँ नित नित रोज ss हो sss
मधुर तुम्हारे S गीत बिना SS जीवन का नहीं छोर 5 हो 5 हो s
(अन्तरा)
Jain Education International
तम हमारे सअत है 5 राह है तिरछो धार 5
लोभ मोह, के बहाव में ss गिरती नैय्या बार ss लौ तुम्हारी जली रहे SS २ ऽऽ तिमिर पास न आपे ss हो हो 5 प्रभु तुम्हारे नाम को
रहूँ, सदा परिग्रह बिना SS अहिंसा के पथ पाल ss
सत्य सदा मन में रहे ss अचार्य आचार के सात SS । हो ऽ हो 5 पंच महाप्र संग रहे SS २ SS मोह कर्म मिट जाय ss हो हो 5 प्रभु तुम्हारे नाम को .....
(तर्ज
• नैन नाही मिलाओ ) (स्थापी)
ज्ञान ओ ध्यान की ज्योति जलाओ 52 ss मनुज जनम पाया है आज ऽ आऽ आऽ ज्ञान ध्यान की ज्योति जलाओ
निर्मल दोसी
(अत्तरा )
निसर्ग, अधिगं, को लाओ ये साथ 52ss उपशम क्षयो s - पशम क्षय मोह s२ss ज्ञान ध्यान की ज्योति जलाओ
"Few burdens are heavy when everyone lifts"
सातों तलों के रुप जानो Ssss तत्वार्थ, धरम, शुक्ल ध्यान SS २ ss ज्ञान ओ ध्यान की ज्योति जताओ.... मनुज जनम पाया है आज .....
ज्ञान ओ ध्यान की ज्योति जलाओ ।
-
निर्मल दोसी
For Page 149al Use Only
(Shakespeare)
www.jainelibrary.org