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दादा साहब की फेरी
प. पू. श्री साधुकीर्ति गणिजी म. सा.
■ इसमें गुरूदेव जिन कुशल सूरी दादा की महिमा, नाम सुमिरण का प्रभाव, व उनकी साधना के अतिशय का वर्णन है
विलसे ऋद्धि समृद्धि मिली, शुभ योगेपुण्यदशा सफली । जिनकुशल सूरीगुरू अतुलबली, मनवंछित आपे रंगरली ||१||
मंगल लील समे विपुला, नव नव महोत्सव राज्यकला । सुपसायें गुरू चढ़ति कला, सुकुलीनी पुत्रवती महिला ||२||
सबही दिन थाये सबला, सदवास कपूर तणा कुरला । हयगय रथ पायक बहुला, कल्लोल करे मंदिर कमला ||३|| विंजे चमर निशान घुरे, नरवइ दरबार खड़ा पहुरे । जय २ कर जोड़ि उचरे, सानिध्य गुरू सब काज सरे ||४|| सरसा भोजन पान सदा, दुख रोग दुष्काल न होय कदाः । अविचल उल्लट अड़ मुदा, गुरू पूरण दृष्टि प्रसन्न सदा ||५|| घम घम बादल नाद घुमे, बत्तीसे नाटक रंग रमें । प्रगट्यो पुण्य प्रताप हमें, सबला अरियण ते आय नफे ||६|| तन सुख मन सुख चीर तने, पहिरे वलाउल होय रणे । ध्यावो कुशल गुरु एक मने, जृंभक सुर मन्दिर भरे धने ||७ तत खिण धन खंच्यो आवे, करि श्याम घटा मेह बरसावे । तिसियां तो तुरत पाबे, जलदाता त्रिजग सुजस गावे ||८|| लहरयां जल कल्लोल करे, प्रवहण भय सायर मध्य डरे । बुड़ता वाहण जे समरे, ते आपद निश्चय से उतरें ।।९।। खड़ 2 खड़ग प्रहार वहें, सौदामिनी जिम समसेर रहे । कुशल २ गुरु नाम कहे, ते क्षेम कुशल रण मध्य लहे ||१०||
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भ सकल परचा पूरे, श्री नागपुरे संकट चूरे । मंगलोरे अधिके नूरे, देराउर भय टाले दूरे 119911 वीरमपुर वाने सुधरे, खंभायतपुर विक्रमनयरे ।
जिनचन्दसूरि पाटे पवरे, जसु कीरति मही मंडल पसरे ||१२|| पूर्व पश्चिम दक्षिण आगे, उत्तर गुरु दीप सौभागे । दहोदिशी जन सेवा मांगे, श्री खरतरगच्छमहिमा जागे ||१३||
पुर पट्टन जनपद ठामे, गाईजे कुशल नयर गामे । पुजे जे नर हित कामे, ते चक्रवर्ति पदवी पामे ||१४|| श्रीजिनकुशलसूरि साखें, सेवक जनने सुखिया राखें । समरयां गुरु दरशन दाखे, श्रीसाधुकीर्ति पाठक भाखे ||१५||
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