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________________ JA INA... 2005 196 Jain Education International 2010_03 ܀܀܀ गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकल जाते हैं तो वे परिभ्रमण करते हैं और यदि उससे नहीं निकल पाये तो ध्वंस हो जाते हैं। ऐसा ही इस जीव के साथ भी है। हमारे क्रोध-मान आदि कषाय भाव आतंरिक रासायनिक प्रक्रिया के परिणाम होते हैं। उदाहरणार्थ, जब व्यक्ति क्रोध करता है तो उसके अन्दर ऐसी रासायनिक क्रिया होती है उसकी संपूर्ण शरीर की मूल क्रिया ही बदल गई है। वाणी असंयमित हो जाती है और क्रिया हिंसक बनती है। ऐसी ही समान क्रियायें जाननी चाहिए । भौतिक विज्ञान जिन खोजों के लिए कार्यरत है उसमें से अनेक खोजें, यह धर्म हजारों वर्ष पूर्व कर चुका है। उदा वनस्पति में जीव की ही बात लें तो जगदीश चंद्र बोस को इसी खोज पर नोबल प्राइस मिला जो खोज जैन धर्म लाखों वर्ष पूर्व करके कर चुका था कि वनस्पति में जीव है- उसमें सुख-दुख की अनुभूति है आदि । ܀܀܀܀܀܀܀ आप चाहे ज्योतिष शास्त्र को लें, चाहे वैदिक शास्त्र को लें, चाहे आकाशगामी बड़े वायुयानों को लें या विनाशक शस्त्रों की बात करें ये सब हमारे हजारों वर्ष पूर्व खोजे हुए तथ्य थे पर हमने कभी विनाशक शक्तियों को बढ़ावा नहीं दिया था। जैन धर्म जब परस्परोमग्रह की बात करता है उस समय वह पुःन मानवता के ही विकास सहयोग की बात करता है। यह सिद्धांत जिसका विकास अनेकांत वाद के रूप में हुआ आज विश्वशान्ति हेतु सर्वाधिक उपयोगी सिद्धांत बना है। यह बात अलग है कि विश्व के परस्पर विरोधी विचारधारा वाले नेता इस सिद्धांत का नाम न जानते हों पर यह तो मान ही गए हैं कि परस्पर चर्चा विचार से ही हम सत्य को जान सकते हैं। सत्य को विविध दृष्टिकोणों से जानने का यह वैज्ञानिक अभिनम Extending Jain Heritage in Western Environment जैन दर्शन की मौलिक देन है। तात्पर्य यह है कि जैन दर्शन ने जिस सिद्धांत का प्रतिपादन किया वह पूर्ण कसौटी पर कस कर किया गया अतः इसमें वैज्ञानिकता अर्थात सत्य का सर्वाधिक समावेश हुआ है। For Private & Personal Use Only ܀܀܀ ܀܀܀ www.jainelibrary.org
SR No.527527
Book TitleJAINA Convention 2005 07 JCNC
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFederation of JAINA
PublisherUSA Federation of JAINA
Publication Year2005
Total Pages204
LanguageEnglish
ClassificationMagazine, USA_Convention JAINA, & USA
File Size10 MB
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