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________________ जम्बूद्वीप हस्तिनापुर में पधारे 40 विदेशी स्कॉलर्स जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर में 14.06. 11 को अमेरिका आदि विभिन्न स्थानों | International Summer School Tor Jain Studies से पधारे लगभग 40 विदेशी स्कॉलर्स ने Kone- Jambudweep. Hastinapur on-June 14.2011 पूज्य गणिनीप्रमुख आर्यिका श्री ज्ञानमती Latemty-Gunint Shri Gurumati MataJRArylka ChandmmHEINIST Pressur-ISIS.Delhiemi -DJIGRamlalNRHastinarur माताजी के मुखारविन्द से जैनधर्म में विज्ञान का अद्भुत ज्ञान प्राप्त किया। इस अवसर पर सभी शोधार्थियों ने जम्बूद्वीप रचना, तेरहद्वीप रचना और तीनलोक रचना का दर्शन करते हुए जैनधर्म में भूमंडल के नक्शे को जानने जम्बूद्वीप में इंटरनेशनल स्कूल में विराजित साधुओं के साथ आर समझन का प्रयास किया। इस | विदेशी शोधार्थियों को अध्ययन कराती पूज्य ज्ञानमती माताजी। अवसर पर सभी विदेशी स्कॉलर्स ने अत्यन्त प्रभावित होकर प्राचीन दिगम्बर जैन ग्रंथों में जैनभूगोल के वर्णन को जाना। जैनधर्म में शोध कार्य कर रहे विदेशी शोधार्थियों को भारत में आमंत्रित कर जैनधर्म का विशेष ज्ञान प्राप्त कराने हेतु दो माह का इंटरनेशनल समर स्कूल प्रतिवर्ष लगाया जाता है। इस वर्ष लगभग 40 विदेशी स्कालर्स इस समर स्कूल में भाग लेकर जैनधर्म के वरिष्ठ विद्वानों द्वारा जैनधर्म में विज्ञान, पर्यावरण, समाजशास्त्र, पूजा पद्धति आदि जैसे अनेक विषयों पर अध्ययन कर रहे हैं। इसी श्रृंखला में जैन भूगोल को समझने के लिए समस्त शोधार्थियों ने जम्बूद्वीप-हस्तिनापुर पधारकर पूज्य गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी से बहुमूल्य बातें सीखीं। पूज्य माताजी ने अपने लेक्चर में वर्तमान पृथ्वी तथा नरकलोक, स्वर्गलोक एवं सूर्य और चन्द्रमा आदि ग्रहों की अवस्थिति बताते हुए अनेक अमूल्य बातें बताई। उन्होंने कहा कि जैन र्म के अनुसार इस जम्बूद्वीप में दो सूर्य और दो चन्द्रमा माने गये हैं, जो सूर्य आज उगता है वह सूर्य दूसरे दिन नही उगता अपितु अन्य एक सूर्य दूसरे दिन प्रकाश देता है। इसी प्रकार चन्द्रमा का भी भ्रमण इस पृथ्वी पर होता है। उन्होंने कहा कि एक दिन जो सूर्य भरतक्षेत्र में आता है, वह दूसरे दिन ऐरावत क्षेत्र में जाता है और इस प्रकार ऐरावत क्षेत्र वाला सूर्य दूसरे दिन भरतक्षेत्र में आता है। इस कम के अनुसार जैनधर्म में दो सूर्य और दो चन्द्रमा माने गये हैं। उन्होंने कहा कि सूर्य की भ्रमण गति एक मिनट में लगभग साढ़े 7 लाख किमी. मानी गई है और शास्त्रों में सूर्य के विमान से भी बड़ा चन्द्रमा का विमान बताया गया है। उन्होंने त्रिलोकसार ग्रंथ का आधार लेते हुए कहा कि सूर्य में बारह हजार किरणें होती हैं एवं सूर्य स्वयं स्वभाव से गरम नहीं होता अपितु उसकी किरणों में गर्मी होती है। उन्होंने बताया कि सूर्य का आकार अE चिन्द्राकार है एवं दूसरे आधे हिस्से में सिद्ध भगवान के चैत्यालय बने हुए हैं। वास्तव में यह सूर्य देवों का विमान है, जिसे लेकर देवतागण जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड द्वीप आदि में विराजमान भगवन्तों की वंदना के लिए पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। इस अवसर पर आर्यिका श्री चंदनामती माताजी द्वारा जैनधर्म में षट्काल परिवर्तन के विषय पर विशिष्ट व्याख्यान प्रदान किया गया । इस व्याख्यान के माध्यम से शोधार्थियों को पहला, दूसरा, तीसरा काल तथा चौथा काल, जिसमें तीर्थकर भगवन्तों का जन्म होता है व वर्तमान में चल रहे पंचमकाल और आने वाले 92 __ अर्हत् वचन, 23 (3), 2011
SR No.526590
Book TitleArhat Vachan 2011 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2011
Total Pages101
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size32 MB
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